आराधना महोत्सव में विद्वत सम्मान एवं चोटी प्रतियोगिता गुरूवार को : शंकराचार्य वासुदेवानंद

प्रयागराज, 03 दिसम्बर (हि.स.)। जगद्गुरू शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने शंकराचार्य आश्रम अलोपीबाग में आयोजित आराधना महोत्सव में अपने आशीर्वचन में बताया कि जगद्गुरू भगवान शंकराचार्य ने वैदिक सनातन मान्यताओं को ध्वस्त करने वालों से शास्त्र एवं शस्त्र से संघर्ष करते हुए देश के चारों कोने में द्वारकापुरी पश्चिम में शारदापीठ, दक्षिण प्रान्त में श्रृंगेरीमठ, जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ और उत्तर में ज्योतिर्मठ की स्थापना किया।

सर्वप्रथम ज्योतिर्मठ में त्रोटकाचार्य, शारदामठ में हस्तमलकाचार्य एवं श्रृंगेरीमठ में सुरेश्वराचार्य एवं गोवर्धन मठ में पद्मपादाचार्य को प्रमुख रूप से अपना शिष्य बनाते हुये उपरोक्त प्रकार से पीठासीन किया। आज भी ये अलग-अलग मठों के शंकराचार्य के नाम पद पर सनातन वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं।

शंकराचार्य ने बताया कि ज्योतिर्मठ में उपरोक्त परम्परा 1833 में बाधित हो गई और 165 वर्षों बाद विद्वान तपस्वी सन्त श्रीस्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर का नाम पद सम्भालते हुए जगद्गुरू शंकराचार्य के रूप में वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार प्रारम्भ किया। उनके द्वारा नामित स्वामी शान्तानंद और स्वामी विष्णुदेवानंद पीठासीन हुए। स्वामी विष्णुदेवानंद ने वासुदेवानंद सरस्वती महाराज को ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य के रूप में नामित किया।

प्रवक्ता ओंकारनाथ त्रिपाठी ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा में श्रवणानंद महाराज ने कथा में गीत संगीत के साथ भजन लहरी से कथा श्रवण कर रहे भक्तों को भागवत रस मे सराबोर कर दिया। उन्होंने बताया कि वृहस्पतिवार को आराधना महोत्सव के अन्तिम दिन 11 बजे शंकराचार्य जगद्गुरू ब्रह्मलीन स्वामी शान्तानंद महाराज का जयन्ती समारोह, 2 बजे से श्रीमद्भागवत महाकथा पुराण की कथा, सायं 4 बजे से विद्वत सम्मान एवं 5 बजे चोटी प्रतियोगिता होगी।

प्रवक्ता ने बताया कि आराधना महोत्सव के अंत में गणेश जी, हनुमान जी, राधामोहन आदि भगवान शंकराचार्य, शंकराचार्य ब्रह्मानंद सरस्वती, शान्तानंद सरस्वती एवं शंकराचार्य विष्णुदेवानंद की पूजा एवं आरती किया। अन्त में प्रसाद वितरण किया गया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दण्डी सन्यासी विनोदानंद महाराज, दण्डी सन्यासी विश्वदेवानंद महाराज, पं0 शिवार्चन उपाध्याय पूर्व प्रधानाचार्य ज्योतिष्पीठ संस्कृत महाविद्यालय, बंगाली बाबा, जितेन्द्र ब्रह्मचारी और आचार्य ओंकार दुबे आदि उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र