जेन जी आंदोलन के दौरान सेना की भूमिका पर उठे सवालों का प्रधान सेनापति ने सर्वोच्च अदालत में दिया जवाब
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- Dec 03, 2025
काठमांडू, 3 दिसंबर (हि.स.)। नेपाली सेना ने जेन-जी आन्दोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा नहीं करने संबंधी आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि सेना ने सुरक्षा को लेकर ऐसे सभी कदम उठाए जिससे जनहानि के बिना, सिंह दरबार समेत सभी सार्वजनिक संपत्तियों की रक्षा की जा सके।
प्रधान सेनापति अशोकराज सिग्देल सहित सभी सुरक्षा निकायों को विपक्षी बनाकर दायर किए गए याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने सात दिनों के भीतर लिखित जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।
प्रधान सेनापति सिग्देल की ओर से जमा किए गए जवाब में सेना ने अपने विरुद्ध उठाए गए आरोपों को अस्वीकार किया है। सैन्य मुख्यालय का कहना है कि सिंह दरबार की सुरक्षा के लिए सेना ने हवाई फायर किया था, भीड़ को कई बार बाहर भेजा गया, और जब यह स्पष्ट हो गया कि मामूली क्षति के बिना भीड़ नहीं रुकेगी, तब आवश्यक कदम उठाए गए।
याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि वर्तमान सहज परिस्थितियों में संविधान और कानून के अनुसार कार्य होना चाहिए था तथा सेना को भौतिक संरचनाओं की रक्षा करनी चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। सेना ने इस आरोप को अस्वीकार किया है। सैन्य मुख्यालय के अनुसार, “तत्कालीन असहज स्थिति में नेपाली सेना ने अत्यधिक संयम और सहनशीलता का परिचय देते हुए न्यूनतम बल का प्रयोग किया।”
सेना का दावा है कि सिंह दरबार में घुसे हुए उत्तेजित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 46 राउंड हवाई फायर किया गया और दो बार मुख्य गेट से धकेल कर तथा समझा कर बाहर भेजा गया।
सेना ने यह भी कहा है कि चारों दिशाओं से बड़ी संख्या में आक्रोशित भीड़ सिंहदरबार में प्रवेश कर रही थी, और बड़े पैमाने पर मानवीय क्षति के बिना भीड़ को रोकना संभव नहीं था। इसलिए समग्र शांति और सुरक्षा बनाए रखने के उद्देश्य से आवश्यक पहल की गई।
सेना के अनुसार, “मानवीय सुरक्षा भौतिक सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण होती है। घटनाओं की जिम्मेदारी वहन करने के साथ-साथ नेक नियत, आवश्यकता के सिद्धांत और सही अभिप्राय के साथ राष्ट्र की शांति स्थापना में योगदान के लिए नेपाली सेना की भूमिका की विश्व स्तर पर सराहना भी हुई है।”
सेना की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि प्रधान सेनापति के पास सैन्य अभियान का निर्णय लेने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। संविधान की धारा 266(1) के अनुसार सैन्य अभियान या नियंत्रण का अधिकार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर मंत्रिपरिषद को है। इसलिए प्रधान सेनापति केवल नेपाल सरकार के आदेशों और निर्देशों को कार्यान्वित करने के स्तर पर ही रहते हैं।
सेना ने तर्क दिया है कि धारा 267(6) के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता, भौगोलिक अखंडता या किसी हिस्से की सुरक्षा पर गंभीर संकट की स्थिति में ही मंत्रिपरिषद के निर्णय पर राष्ट्रपति द्वारा सैन्य अभियान की घोषणा की जाती है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले 9 सितंबर को संसद भवन, सिंह दरबार, सर्वोच्च अदालत, शीतल निवास, बालुवातर सहित विभिन्न सरकारी कार्यालयाें में तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुई थीं। सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को भारी नुकसान होने के बावजूद सेना के हस्तक्षेप न करने की आलोचना की गई थी। हालांकि सेना ने कहा है कि उसने मानवीय क्षति से बचने के लिए बल प्रयोग न करने की नीति अपनाई थी।
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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास



