बहरेपन से प्रभावित बच्चे कॉक्लियर इम्प्लांट के बाद सुन सकेंगे : जिलाधिकारी
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- Dec 07, 2025

-यूपी का पहला जिला अस्पताल जहां निःशुल्क कॉक्लियर इम्प्लांट होगा-निजी अस्पतालों में 4–5 लाख का खर्च, अब इलाज होगा बिल्कुल मुफ्त
कानपुर, 07 दिसंबर (हि.स.)। कई बच्चे इसलिए सुन नहीं पाते क्योंकि परिवार महंगे उपचार का खर्च नहीं उठा पाता। निःशुल्क कॉक्लियर इम्प्लांट सुविधा शुरू होने से ऐसे बच्चों को नया अवसर मिलेगा। शासन का लक्ष्य है कि कोई भी बच्चा आर्थिक अभाव के कारण उपचार से वंचित न रहे और हर जरूरतमंद को अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सके। यह बातें रविवार को जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने कही।
शहर के हजारों श्रवण-बाधित बच्चों के लिए एक ऐतिहासिक कदम केंद्र सरकार से स्वीकृति मिलते ही उर्सला अस्पताल में कॉक्लियर इम्प्लांट सुविधा शुरू करने की तैयारी अंतिम चरण में पहुंच गई है। यह सुविधा देने वाला उर्सला उत्तर प्रदेश का पहला जिला अस्पताल बनने जा रहा है।
जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह की पहल पर यह स्वीकृति तेज़ी से संभव हुई है। उनके द्वारा किए गए प्रयासों के बाद प्रस्ताव को मंजूरी मिली और अस्पताल को कॉक्लियर इम्प्लांट के लिए अधिकृत किया गया। अब तक कानपुर के सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी। मरीजों को बाहर या निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता था। जिलाधिकारी ने इस उपलब्धि के लिए उर्सला के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ प्रवीण सक्सेना एवं उनकी टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि डॉ सक्सेना के अथक प्रयास का परिणाम है।
जिला अस्पताल उर्सला के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सक्सेना बताते हैं कि इस सुविधा के शुरू होने से जिले में श्रवण-पुनर्वास प्रणाली में बड़ा बदलाव आएगा। अभी तक कानपुर में इम्प्लांट केवल निजी अस्पतालों में उपलब्ध था जहां सर्जरी का खर्च चार से पांच लाख रुपये तक पहुंच जाता था। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे इलाज से वंचित हो जाते थे। कई बच्चों में सुनने की क्षमता न होने के कारण भाषा विकास रुक जाता है और स्कूल शिक्षा भी प्रभावित होती है।
भारत में हर एक हजार बच्चों में लगभग 3–4 बच्चे किसी न किसी स्तर की श्रवण समस्या से पीड़ित पाए जाते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि पहचान और उपचार में देरी के कारण हजारों बच्चे बोलने और सुनने की क्षमता विकसित नहीं कर पाते। कॉक्लियर इम्प्लांट एक से पांच वर्ष की आयु में सबसे कारगर होता है। इस उम्र में मस्तिष्क की श्रवण क्षमता तेजी से विकसित होती है, जिससे सर्जरी के बाद बच्चे बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं।
इम्प्लांट के बाद स्पीच थेरेपी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। नियमित थेरेपी के बाद बच्चे सामान्य बच्चों की तरह भाषा सीख सकते हैं और स्कूल शिक्षा में भी आसानी से शामिल हो पाते हैं। उर्सला में सुविधा शुरू होने से न केवल कानपुर बल्कि आसपास के जिलों फतेहपुर, उन्नाव, बांदा, कन्नौज, हमीरपुर तक को सीधा लाभ मिलेगा।
दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन अली यावर जंग राष्ट्रीय वॉक एवं श्रवण दिव्यांगजन संस्थान द्वारा उर्सला का एडिप योजना में इम्पैनलमेंट किया गया है।
हाल ही में स्वास्थ्य विभाग ने एक व्यापक स्क्रीनिंग शिविर आयोजित किया था। इसमें 42 बच्चों की जाँच की गई। इनमें से छह बच्चों में गंभीर श्रवण हानि पाई गई और वे कॉक्लियर इम्प्लांट के लिए उपयुक्त पाए गए।
इन छह बच्चों की सर्जरी जनवरी 2026 में कराई जाएगी। अस्पताल प्रबंधन ने बच्चों के दस्तावेज, मूल्यांकन रिपोर्ट और विशेषज्ञ टीम की तैनाती की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
डॉ. सक्सेना ने बताया कि उर्सला के ऑपरेशन थिएटर को हाई-एंड कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी की आवश्यकताओं के अनुरूप अपग्रेड किया जा रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / रोहित कश्यप



