काशी में जो आया, फिर वह कभी पराया नहीं रहता : पद्मश्री राजेश्वर आचार्य
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- Dec 05, 2025

--काशी तमिल संगमम् 4.0 : शैक्षणिक सत्र में काशी और तमिलनाडु की आध्यात्मिक–दर्शन परम्पराओं पर चर्चा
वाराणसी, 05 दिसम्बर (हि.स.)। काशी तमिल संगमम् 4.0 के तहत शुक्रवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में “काशी और तमिलनाडु की आध्यात्मिक एवं दार्शनिक परंपराएँ” विषयक ज्ञानवर्धक शैक्षणिक सत्र का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के विभिन्न संस्थानों से आए लगभग 200 शिक्षकों ने भी पूरे उत्साह से भागीदारी की। शैक्षणिक सत्र का शुभारम्भ डीन, शिक्षा संकाय, बीएचयू प्रो. अंजली वाजपेई ने किया। रणवीर संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों के पारम्परिक मंगलाचरण , शिक्षा संकाय की छात्र टीम ने बीएचयू कुलगीत का गायन किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पद्मश्री पंडित राजेश्वर आचार्य ने काशी की वास्तुकला, दर्शन, अध्यात्म और लोक–परम्पराओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि “राम और कृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है, पर शिव का नहीं—क्योंकि लोग प्रायः आकर्षण को ही सौंदर्य मान लेते हैं। प्रेम का प्रतीक रामसेतु स्नेह का अनंत संकेत है। काशी अहंकार को स्वीकार नहीं करती यहाँ कोई छोटा नहीं होता। ”तमिल परम्पराओं का उन्होंने उल्लेख किया और कहा कि “दक्षिण हमारे सभी प्रश्नों का उत्तर देता है। काशी में जो आया, फिर वह कभी पराया नहीं रहता।”
आईआईटी बीएचयू के प्रो. राकेश कुमार मिश्र ने कहा कि “काशी तमिल संगमम् ने दोनों क्षेत्रों को निरंतर समृद्ध किया है। नई भाषा, नई दोस्ती और नई समझ यही इस पहल का सार है।” उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि संगमम् ने एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को और मजबूत किया है। योगी रामसूरतकुमार आश्रम से आईं विशिष्ट अतिथि अनाहीता सिधवा ने 1959 में तमिलनाडु और उत्तर भारत के बीच स्थापित आध्यात्मिक सेतु का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत “महापुरुषों की क्रीड़ा भूमि और ऋषियों की भूमि” है। उन्होंने योग और आध्यात्मिक साधना को आधुनिक जीवन में दिशा देने वाला महत्वपूर्ण पथ बताया।
कार्यक्रम में बीएचयू कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने दोनों संस्कृतियों की समानताओं का उल्लेख किया। कहा कि “दुनिया में कोई दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते—यहाँ तक कि जुड़वाँ भी नहीं, इसी प्रकार संस्कृतियाँ भी समान नहीं हो सकतीं। प्रश्न ‘समानता’ का नहीं, बल्कि ‘एकत्व’ के उत्सव का है—उन ओवरलैपिंग समानताओं का है जो हमारे सहस्राब्दियों पुराने संबंधों को प्रमाणित करती हैं।” उन्होंने महाकवि सुब्रमण्य भारती के विचारों को उद्धृत किया और प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत 2047 तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्यों को भारतीय ज्ञान–परम्परा से जोड़ते हुए कहा कि हमें व्यापक भारतीय पहचान को मजबूत करना होगा। कुलपति ने यह भी घोषणा की कि बीएचयू के 300 छात्र तमिलनाडु की शैक्षणिक सांस्कृतिक यात्रा पर भेजे जाएंगे, जिससे युवा पीढ़ी में राष्ट्रीय एकता और अंतर्सांस्कृतिक समझ विकसित होगी। कार्यक्रम में शिक्षा संकाय, बीएचयू की उपलब्धियों पर आधारित एक अन्य डॉक्युमेंट्री भी प्रदर्शित की गई। इसके बाद आयोजित सम्मान–समारोह में सभी विशिष्ट अतिथियों को स्मृति–चिह्न एवं पुष्प गुच्छ प्रदान किए गए।
—तमिल दल सेंट्रल हिन्दू बॉयज़ स्कूल पहुंचा
बीएचयू में शैक्षणिक सत्र के बाद तमिलनाडु से आए शिक्षकों का समूह कमच्छा स्थित सेंट्रल हिन्दू बॉयज़ स्कूल और रणवीर संस्कृत विद्यालय पहुँचा। यहां विद्यालय परिसर स्थित प्राचीन मंदिर में दल ने दर्शन पूजन किया। इसके बाद विद्यार्थियों ने नृत्य–संगीत के साथ रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया। प्राचार्य आनंद कुमार जैन ने विद्यालय की ऐतिहासिक विरासत का परिचय कराया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी



