आ गई भोपाल गैस त्रासदी की बरसी, आज भी ताजा है प्रभावितों का दर्द

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री (फाइल फोटो)

भोपाल, 02 दिसम्बर (हि.स.)। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात हुई दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक घटनाओं में से एक भोपाल गैस त्रासदी की बरसी आ गई है। इस रात यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के एक टैंक से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस रिसी। जब पास की एक बस्ती तक ये गैस जब पहुंची, तो कई लोग नींद में ही सोए रह गए थे।

कई लोगों का दम घुटने लगा तो धीरे धीरे चारों ओर भगदड़ मच गई थी। फैक्टरी के आसपास के इलाके में लाशें बिछ गईं थीं। जिन्हें ढोने के लिए गाड़ियां कम पड़ गईं थीं। किसी ने पति-बेटों को आंखों के सामने मरते देखा तो किसी ने अपनी तीन पीढ़ियां खो दीं। भले ही इस त्रासदी को 41 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी इसका दर्द लोगों की आंखों में दिखता है।

जनसम्पर्क अधिकारी केके जोशी ने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी की 41वीं बरसी बुधवार, 3 दिसम्बर को बरकतउल्ला भवन सेंट्रल लायब्रेरी भोपाल में होगी। इसमें दिवंगत व्यक्तियों की स्मृति में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया जा रहा है। प्रार्थना सभा में हिन्दू, मुस्लिम, बोहरा, इसाई, सिख, जैन और बौद्ध संप्रदाय के धर्मगुरूओं द्वारा सुबह 10:30 से 11:30 बजे तक पाठ किया जाएगा। दिवंगत व्यक्तियों की स्मृति में सर्वधर्म प्रार्थना सभा में शहर के जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक उपस्थित रहेंगे।

दरअसल, 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी आधी रात से सुबह तक शहर के बीचों बीच बनी कीटनाशक बनाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से निकली जहरीली गैस (मिथाइल आइसो साइनाइट) ने जहां एक तरफ हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे। हालांकि, गैर सरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना ज्यादा थी। इतना ही नहीं, कुछ लोगों का तो ये भी दावा है कि गैस के कारण तुरंत मरने वालों की संख्या 15 हजार से भी अधिक थी, पर मौतों का सिलसिला सिर्फ उस रात से शुरु होकर उसी रात को खत्म नहीं हुआ, ये तब से लेकर अब तक जारी है। रिसर्च में सामने आया है कि जो लोग इस जहरीली गैस का शिकार होने के बावजूद भी बच गए, उनकी तीन पीड़ियों पर इसका असर रहेगा।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक शावर खान ने बताया कि गैसकांड को भले ही 41 साल बीत गए हो, लेकिन गैस पीड़ित आज भी दुनिया की सबसे भयानक त्रासदी का दंश भोग रहे हैं। जिस जगह फैक्ट्री है, उसके जहरीले कचरे की वजह से आसपास के 5 किलोमीटर के दायरे में पीने का पानी दूषित है। इस वजह से हजारों लोग गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं। सरकार इन पीड़ितों की सेहत पर गंभीरता से ध्यान दें। इसके अलावा पीड़ितों को पांच गुना मुआवजा दिया जाए। ताकि, वे बेहतर तरीके से जीवनयापन कर सके।

गौरतलब है कि औद्योगिक दुर्घटना के 41 साल बाद भी यह जहर बच्चों में शारीरिक विकृतियां, कैंसर, कमजोर दिमाग और विकास में देरी का कारण बन रहा है। वैज्ञानिक अध्ययनों में स्पष्ट प्रमाण मिले हैं कि एमआईसी गैस जीनो टॉक्सिक है, यानी यह सीधे डीएनए और क्रोमोसोम (गुणसूत्र) पर हमला करती है। वर्ष 1986 में हुए पहले अध्ययन में ही गैस पीड़ितों के क्रोमोसोम में गंभीर क्षति मिली थी।

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवायर्नमेंटल हेल्थ की रिपोर्ट बताती है कि प्रभावित परिवारों में बच्चों में जन्मजात विकृतियां सामान्य आबादी की तुलना में तीन गुना अधिक हैं। पीड़ित परिवारों में गर्भपात की दर ऊंची और शिशु मृत्यु दर भी सामान्य से कई गुना ज्यादा दर्ज की गई है। पीड़ितों के बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास भी बेहद धीमा है। जहां सामान्य बच्चे नौ से 12 माह की उम्र में चलने लगते हैं, वहीं गैस प्रभावित परिवारों के बच्चे डेढ़ साल बाद ही चल पाते हैं।

हमीदिया अस्पताल के पूर्व फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. डीके सत्पथी बताते हैं कि यूनियन कार्बाइड परिसर से जहरीला कचरा तो हटा दिया गया है, लेकिन पीड़ित परिवार आज भी आनुवंशिक बीमारियों से घिरे हुए हैं। अधिकतर को 12–15 हजार रुपये का मामूली मुआवजा मिला। स्वास्थ्य सुविधाएं भी बदहाल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1991 में प्रभावित बच्चों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस अनिवार्य किया था, लेकिन उसका लाभ सीमित परिवारों तक ही पहुंचा। डॉ. सत्पथी का कहना है कि गैस राहत अस्पताल में काम करने वाले कई स्वास्थ्यकर्मियों को यह जानकारी ही नहीं है कि कौन सी गैस रिसी थी। इलाज को लेकर स्टाफ का प्रशिक्षण अधूरा है। उस समय साइनाइड जहर शरीर से निकालने के लिए जरूरी सोडियम थायोसल्फेट इंजेक्शन सभी पीड़ितों को नहीं दिया जा सका, वरना स्थिति बदल सकती थी।___________

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर