चंडीगढ़ में आयुष्मान और हिमकेयर घोटाले का मास्टरमाइंड एक:डाक्टरों की फर्जी मुहरों से मुफ्त दवाएं निकालकर बेचता, फोटोकापी दुकान से करोड़ों के खेल तक

पीजीआई चंडीगढ़ में सामने आए 1.14 करोड़ रुपए के प्राइवेट ग्रांट सेल घोटाले की परतें खुलने के साथ यह साफ हो गया है कि इससे पहले भी सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं में करोड़ों का फर्जीवाड़ा किया जा चुका था। जांच में सामने आया है कि आयुष्मान भारत और हिमकेयर योजना में हुए घोटालों का मास्टरमाइंड भी वही व्यक्ति था, जिसने पीजीआई प्राइवेट ग्रांट सेल में खेल किया। घोटाले का मुख्य आरोपी दुर्लभ कुमार, अपने साथियों और पीजीआई के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से डाक्टरों और विभागाध्यक्षों की फर्जी मुहरें लगाकर अमृत फार्मेसी से महंगी दवाएं मुफ्त में निकालता था। बाद में इन दवाओं को चंडीगढ़ के नामी केमिस्टों को 10 से 20 फीसदी कम दाम पर बेच दिया जाता था। फोटोकापी दुकान से करोड़ों के खेल तक दुर्लभ कुमार पीजीआई की गोल मार्केट में फोटोकापी की दुकान चलाता है। सीबीआई ने तीन दिन पहले दुर्लभ और पीजीआई के छह कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इससे पहले इसी साल चंडीगढ़ पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दुर्लभ को आयुष्मान भारत और हिमकेयर योजना के नाम पर हुए फर्जीवाड़े में गिरफ्तार किया था। जांच में सामने आया है कि सरकारी योजनाओं के तहत गरीब मरीजों को मिलने वाली मुफ्त दवाएं फर्जी मरीजों के नाम पर निकालकर निजी मेडिकल स्टोरों को बेची जाती थीं। फरवरी 2025 में आयुष्मान घोटाला इस फर्जीवाड़े का खुलासा 2 फरवरी 2025 को हुआ। एक युवक आयुष्मान कार्ड के जरिए अमृत फार्मेसी से करीब 60 हजार रुपए की दवाएं लेने पहुंचा। दवाएं मिलने के बाद सुरक्षा कर्मियों को उस पर शक हुआ। इसके बाद उसकी तलाशी ली गई। तलाशी के दौरान युवक के पास से बरामद हुए। युवक की पहचान कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) निवासी रमन कुमार के रूप में हुई। उसके खिलाफ सेक्टर-11 पुलिस थाने में केस दर्ज किया गया। पूछताछ में दुर्लभ कुमार का नाम सामने आया। ऐसे चलता था पूरा गिरोह पुलिस और सीबीआई जांच में सामने आया है कि यह एक संगठित गिरोह था, जो पीजीआई की व्यवस्थाओं का दुरुपयोग कर लंबे समय से फर्जीवाड़ा कर रहा था। जांच के मुताबिक इस पूरे नेटवर्क का मास्टरमाइंड दुर्लभ कुमार था। आयुष्मान कार्ड बनवाने और फर्जी मरीजों की एंट्री कराने में अजय कुमार उसकी मदद करता था, जबकि अमृत फार्मेसी और पीजीआई से जुड़े कुछ कर्मचारी अंदरूनी तौर पर सहयोग कर रहे थे। गिरोह पहले पीजीआई में इलाज कराने वाले मरीजों का रिकार्ड और निजी विवरण हासिल करता था। इसके बाद उन्हीं मरीजों के नाम पर फर्जी कागजात तैयार किए जाते थे। इन कागजातों में मरीजों के नाम पर फर्जी पर्चियां बनाई जाती थीं, जिन पर महंगी दवाएं लिखी जाती थीं। इइन पर्चियों पर डाक्टरों और पीजीआई के विभागाध्यक्षों की नकली मुहरें लगाई जाती थीं, ताकि वे असली लगें। तैयार की गई इन फर्जी पर्चियों और इंडेंट फॉर्म के आधार पर अमृत फार्मेसी से मुफ्त में दवाएं निकाली जाती थीं। इसके बाद यह दवाएं चंडीगढ़ की निजी केमिस्ट दुकानों तक पहुंचाई जाती थीं, जहां इन्हें बाजार मूल्य से कम दामों पर बेचा जाता था। जांच एजेंसियों के मुताबिक इसी तरीके से सरकारी योजनाओं और गरीब मरीजों के लिए तय दवाओं का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया। रमन कुमार इन पर्चियों के जरिए अमृत फार्मेसी से दवाएं निकालता और उन्हें निजी केमिस्ट दुकानों तक पहुंचाता था। दुर्लभ कुमार इन्हें बाजार मूल्य से 10–15 फीसदी सस्ते दामों पर बेच देता था। गरीब मरीजों की ग्रांट में भी बड़ा खेल पीजीआई की प्राइवेट ग्रांट सेल के जरिए गरीब और जरूरतमंद मरीजों को इलाज के लिए आर्थिक मदद दी जाती है, लेकिन सीबीआई जांच में सामने आया है कि इसी व्यवस्था का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया। जांच के मुताबिक आरोपियों ने फर्जी लाभार्थियों के नाम पर ग्रांट मंजूर करवाई और कई मामलों में ऐसे मरीजों के नाम पर भी पैसे निकाले गए, जिनकी पहले ही मौत हो चुकी थी। सीबीआई के अनुसार, ग्रांट की यह राशि सीधे आरोपियों और उनके रिश्तेदारों के बैंक खातों में ट्रांसफर की जाती थी। बाद में इस रकम को आपस में बांट लिया जाता था। जांच एजेंसी का कहना है कि इस तरीके से गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए तय आर्थिक सहायता को निजी लाभ के लिए इस्तेमाल किया गया। सीबीआई के मुताबिक चेतन गुप्ता, सुनील कुमार, प्रदीप सिंह, गगनप्रीत सिंह, धर्मचंद और नेहा ने आपसी मिलीभगत से फर्जी क्लेम फाइलें प्रोसेस कीं। ग्रांट की रकम बाद में दुर्लभ कुमार, साहिल सूद और अन्य निजी लोगों के खातों में ट्रांसफर की जाती थी। इन आरोपियों पर सीबीआई का केस दुर्लभ कुमार (फोटोकापी दुकान मालिक)साहिल सूद (पार्टनर)धर्मचंद (जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंट, रिटायर्ड)सुनील कुमार (मेडिकल रिकार्ड क्लर्क)प्रदीप सिंह (लोअर डिवीजन क्लर्क)चेतन गुप्तानेहा (हास्पिटल अटेंडेंट)गगनप्रीत सिंह (प्राइवेट ग्रांट सेल कर्मचारी)