चंडीगढ़ में होमगार्ड को 3 साल की सजा:भाई की पहचान चुराकर होमगार्ड की नौकरी,भाई ने ही दर्ज कराई थी शिकायत

चंडीगढ़ में एक पुराने फर्जीवाड़े के मामले में अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए आरोपी को 3 साल की सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया है। अदालत ने 2016 से लंबित धोखाधड़ी के मामले में सेक्टर-49-सी निवासी धर्मिंदर सिंह को दोषी ठहराते हुए तीन साल की सश्रम कैद की सजा सुनाई है। आरोपी पर अपने ही सगे भाई की पहचान का इस्तेमाल कर चंडीगढ़ होमगार्ड विभाग में स्वयंसेवक के रूप में नौकरी हासिल करने का आरोप था। रमेश कुमार सिंह की शिकायत के बाद होमगार्ड कंपनी कमांडर बलबीर सिंह ने मामले की जांच करवाई। जांच में आरोप सही पाए जाने पर आरोपी को 31 मार्च 2016 को चंडीगढ़ होमगार्ड की सेवा से हटा दिया गया। ट्रायल के दौरान अदालत ने मूल भर्ती रिकॉर्ड, दस्तावेज और मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय की गवाही समेत अन्य साक्ष्यों का अध्ययन किया। कोर्ट ने माना कि आरोपी का असली नाम धर्मिंदर सिंह है, जबकि उसने रमेश कुमार सिंह के नाम और शैक्षणिक प्रमाण-पत्रों का इस्तेमाल कर नौकरी हासिल की।अदालत ने कहा कि यह मामला साफ तौर पर सरकारी विभाग को धोखा देने और किसी दूसरे की पहचान अपनाकर काम हासिल करने से जुड़ा है। भाई ने ही दर्ज कराई थी शिकायत मामले की खास बात यह रही कि शिकायतकर्ता कोई और नहीं, बल्कि आरोपी का सगा भाई रमेश कुमार सिंह था। रमेश ने होमगार्ड विभाग को शिकायत देकर बताया कि उसका भाई उसकी मैट्रिक की असली सर्टिफिकेट और पहचान दस्तावेजों का दुरुपयोग कर विभाग में नौकरी कर रहा है। कोर्ट ने प्रोबेशन से किया इनकार अदालत ने 9 दिसंबर के आदेश में साफ कहा कि आरोपी ने किसी और की पहचान अपनाकर सरकारी विभाग को धोखा दिया है। ऐसे मामलों में प्रोबेशन का लाभ नहीं दिया जा सकता। इसलिए अदालत ने आरोपी को सजा सुनाने में नरमी नहीं बरती। कोर्ट ने धर्मिंदर सिंह को धोखाधड़ी का दोषी मानते हुए आईपीसी की धारा 420 के तहत तीन साल की सश्रम कैद और 5,000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। इसके अलावा, किसी और की पहचान अपनाकर धोखा देने के मामले में उसे दो साल की सश्रम कैद और 2,000 रुपए जुर्माने की सजा दी गई। अदालत ने कहा कि दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। 1998 से 2016 तक चला फर्जीवाड़ा अदालत में सामने आया कि धर्मिंदर सिंह ने वर्ष 1998 में अपने भाई रमेश कुमार सिंह की मैट्रिक सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर खुद को ‘रमेश कुमार’ बताकर चंडीगढ़ होमगार्ड में स्वयंसेवक के रूप में भर्ती करा ली। इसके बाद लगभग 18 साल तक वह इसी फर्जी पहचान के सहारे विभाग में सेवा करता रहा।इस दौरान उसने पहचान मजबूत करने के लिए हलफनामे, आधार कार्ड जैसे दस्तावेज भी भाई के नाम पर बनवाए। फर्जी पहचान बनाने की पूरी कहानी मामले में सामने आया कि आरोपी ने 1 दिसंबर 1998 को ‘रमेश कुमार’ के नाम से चंडीगढ़ होमगार्ड में भर्ती ली। भर्ती से पहले उसने 12 नवंबर 1998 को अपनी पहचान दिखाने के लिए हलफनामा दिया, जिस पर एक गवाह और शपथ आयुक्त के हस्ताक्षर थे।इसके बाद 16 नवंबर 1998 को उसकी मेडिकल जांच करवाई गई। उसका चरित्र सत्यापन एसएसपी रूपनगर से कराया गया, जिसमें उसके खिलाफ कोई गलत बात नहीं पाई गई। सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद उसे स्वयंसेवक नंबर 565 दिया गया। यह फर्जीवाड़ा साल 2016 में तब सामने आया, जब उसके भाई ने विभाग में इसकी शिकायत की।