अंग प्रत्यारोपण के लिए 5 साल तक इंतजार:नीति के अभाव में 90% मरीजों की मौत; हाईकोर्ट ने केंद्र और PGI से मांगा जवाब

हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए मरीजों को लगभग पांच साल तक इंतजार करना पड़ रहा है, जबकि सही नीति के अभाव में अंगों की प्रतीक्षा कर रहे 90 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है। इस गंभीर स्थिति को लेकर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और PGI चंडीगढ़ से जवाब तलब किया है। इसके लिए याचिका वकील रंजन लखनपाल द्वारा दायर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि अंगदाताओं की उपलब्धता के बावजूद ट्रांसप्लांट नहीं हो पा रहा, जिससे हजारों लोग समय पर इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ रहे हैं। PGI का नेफ्रोलॉजी ऑपरेशन थिएटर तीन साल से बंद याचिका में बताया गया कि PGI के नेफ्रोलॉजी विभाग का ऑपरेशन थिएटर अगस्त 2021 से बंद पड़ा है, जिससे किडनी ट्रांसप्लांट पर गंभीर असर पड़ा है। जबकि उत्तर भारत के कई राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के मरीज ट्रांसप्लांट के लिए PGI पर ही निर्भर हैं। देश में 2 लाख से ज्यादा मरीजों को किडनी की जरूरत याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि देश में इस समय करीब 2 लाख लोगों को किडनी की जरूरत है। एक अंगदाता 9 लोगों की जान बचा सकता है, लेकिन प्रभावी नीति न होने के कारण अधिकांश मरीज वेटिंग लिस्ट में ही दम तोड़ देते हैं। मृत व्यक्ति से निकाले जा सकते हैं ये अंग याचिका के अनुसार, किसी मृत व्यक्ति से आंखें, किडनी,फेफड़े,दिल,लिवर,त्वचा जैसे कई महत्वपूर्ण अंग दान किए जा सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद व्यवस्थित प्रणाली के अभाव में इनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा। तमिलनाडु बना उदाहरण, सिर्फ 3 महीने में ट्रांसप्लांट याचिकाकर्ता ने तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां नीतिगत फैसलों के कारण ट्रांसप्लांट का इंतजार सिर्फ 3 महीने का होता है। हाईकोर्ट का सख्त रुख, केंद्र और PGI से जवाब तलब शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि याचिका में बताई गई अधिकांश कमियों को दूर कर दिया गया है, लेकिन याचिकाकर्ता ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अभी भी कई गंभीर कमियां बनी हुई हैं। इसके बाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और PGI चंडीगढ़ दोनों को याचिका में उठाए गए सभी बिंदुओं पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। उत्तर भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट सुस्त व्यवस्था और नीति की कमी हजारों जिंदगियों पर भारी पड़ रही है। अब हाईकोर्ट की सख्ती के बाद उम्मीद की जा रही है कि केंद्र और संबंधित संस्थान जल्द ठोस कदम उठाएंगे।