फिर बैकफुट पर पंजाब पुलिस:पहले कंचनप्रीत अब गुरप्रीत सेखों को हाईकोर्ट से मिली रिहाई, शिअद भुनाने में जुटा
- Admin Admin
- Dec 14, 2025
पंजाब पुलिस को हाईकोर्ट की वजह से एक बार फिर से बैकफुट पर जाना पड़ा है। पहले तरनतारन से कंचनप्रीत कौर लेकर और गुरप्रीत सिंह सेखों को हाईकोर्ट के आदेश पर रिहा करना पड़ा है। इन दोनों ही मामलों को शिअद पूरी तरह से भुनाने में जुटा हुआ है। शिअद का कहना है कि सरकार ने विरोधियों के फंडामेंटल राइट्स को कुचलने का प्रयास किया है। शिअद नेताओं को कहना है कि सरकार पंजाब मे विरोधियों पर डर का माहौल बनाकर रखना चाहती है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने शिअद द्वारा आपराधिक छवि वाले नेताओं की मदद करने पर तंज कसा है। उनका कहना है कि अब शिरोमणि अकाली दल का मतलब शिरोमणि अकाली दल बदमाश हो गया है। अब वह ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव का कर रहे हैं, जो पिस्तौल की नोक पर वोट मांग रहे हैं। जबकि उनकी तरफ से किसी का नाम नहीं लिया गया है। कंचनप्रीत के लिए रात को लगी थी अदालत पुलिस की तरफ से तरनतारण से उपचुनाव के लिए शिअद की प्रत्याशी कंचनप्रीत कौर को गिरफ्तार किया था। उस पर आरोप है कि उसके पति ने चुनाव के दौरान विदेश में बैठकर वोटरों को धमकाया है और वह गलत तरीके से विदेश से यहां लौटी हैं। मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो हाईकोर्ट के आदेश पर तरनतारण अदालत लगी और कंचनप्रीत कौर सुबह छोड़ना पड़ा था। इसी तरह का केस फिरोजपुर में हुआ जिला परिषद चुनाव लड़ रहीं मनदीप कौर के पति गुरप्रीत सिंह सेखों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उसे 7/51 के तहत गिरफ्तार किया गया था, उस पर आरोप लगाया गया कि उसके बाहर रहने से चुनाव के दौरान गैरा कानूनी काम हो सकते हैं। उसे अदालत से ज्यूडीशियल रिमांड पर भेज दिया गया। मगर हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो उसे छोड़ना पड़ा है और वह अब चुनाव प्रचार में जुट गया है। दोनों मामलों में अकाली दल हुआ मुखर शिअद नेता व वकील अर्शदीप सिंह कलेर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने गुरप्रीत सिंह सेखों को अवैध हिरासत में रखने के लिए फिरोजपुर के एसडीएम को कड़ी फटकार लगाई और उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि जमानत बॉन्ड प्रस्तुत करने के लिए वकील उपस्थित थे, लेकिन उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई। वकील अर्शदीप सिंह कलेर के अनुसार “गुरप्रीत सेखों की रिहाई शिरोमणि अकाली दल द्वारा उच्च न्यायालय में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के आधार पर हुई है। यह मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन था, जिसे उच्च न्यायालय ने भी उजागर किया।



