अंतरिक्ष में जाने वाली पहली व्हीलचेयर यूजर बनीं मिशाइला बेन्थौस:स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के कारण चल नहीं सकती, यूरोपियन स्पेस एजेंसी में कार्यरत, जानें प्रोफाइल
- Admin Admin
- Dec 23, 2025
जर्मनी की इंजीनियर मिशाइला बेन्थौस (Michaela Benthaus) अंतरिक्ष में जाने वाली दुनिया की पहली व्हीलचेयर यूजर बन गईं। शनिवार, 20 दिसंबर को वे एयरोस्पेस कंपनी, ब्लू ओरिजिन के न्यू शेपर्ड मिशन (NS-37) के जरिए सबऑर्बिटल फ्लाइट पर रवाना हुईं और कार्मन लाइन (करीब 100 किमी ऊंचाई) पार करते हुए अंतरिक्ष तक पहुंचीं। ब्लू ओरिजिन, अमेजन फाउंडर जेफ बेजोस की स्पेस कंपनी है। इस मिशन के साथ मिशाइला इतिहास में दर्ज हो गई हैं। उन्हें मिची (Michi) भी कहा जाता है। वो एक मेक्ट्रोनिक्स, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन इंजीनियर हैं। बचपन से अंतरिक्ष यात्री बनना चाहती थीं मिशाइला का जन्म उत्तरी जर्मनी का एक प्रमुख शहर 'कील' में हुआ था। ये बाल्टिक सागर के किनारे स्थित है। वर्तमान में उनकी उम्र 33 साल है। मिशाइला का बचपन अंतरिक्ष के प्रति जुनून से भरा था। उनका यह जुनून स्टार वार्स जैसी साइंस-फिक्शन फिल्मों से प्रभावित था। बचपन से ही वो अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना देखती थीं। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स हैं मिशाइला स्कूलिंग के बाद ऑस्ट्रिया चली गईं। उन्होंने यहां की जोहान्स केपलर यूनिवर्सिटी से मेक्ट्रोनिक्स, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद वो वापस जर्मनी आ गईं। फिर टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख (TUM) से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया। यूरोपीय स्पेस एजेंसी में काम करती हैं इन्हीं पढ़ाइयों के आधार पर उन्हें यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) में करियर बनाने का मौका मिला। वे नीदरलैंड्स स्थित ESA के ESTEC (European Space Research and Technology Centre) में कार्यरत हैं, जहां उनका डिपार्टमेंट मार्स रेडियो ऑकल्टेशन (Mars Radio Occultation) है। उनकी भूमिका मंगल ग्रह का अध्ययन करने से जुड़ी है। इसमें ग्रह के वातावरण की जांच, सिग्नल को समझना और मिशन की योजना बनाना शामिल है। इसका मकसद मंगल ग्रह की खोज को आगे बढ़ाना है। माउंटेन बाइकिंग दुर्घटना के बावजूद हार नहीं मानी उन्हें आउटडोर एक्टिविटीज जैसे- माउंटेन बाइकिंग और पार्कौर बहुत पसंद थे। लेकिन साल 2018 में माउंटेन बाइकिंग दुर्घटना में स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के कारण पैराप्लेजिक हो गईं। इसके बाद से वे चलने के लिए व्हीलचेयर पर निर्भर हैं। हालांकि, दुर्घटना के बाद मिशाइला ने हार नहीं मानी। उन्होंने साल 2021-22 में एक रिटायर्ड जर्मन-अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर हैंस कोएनिग्समैन (Hans Koenigsmann) से ऑनलाइन संपर्क किया, जो SpaceX के शुरुआती कर्मचारियों में से एक थे। उन्होंने हैंस से पूछा कि क्या व्हीलचेयर यूजर्स भी एस्ट्रोनॉट बन सकते हैं। हैंस उनकी दृढ़ता से कायल हो गए। रिटायर्ड एयरोस्पेस इंजीनियर ने अंतरिक्ष जाने में मदद की साल 2022 में मिशाइला ने हैंस की मदद से अमेरिका के ह्यूस्टन (टेक्सास) से एक पैराबोलिक जीरो-ग्रैविटी फ्लाइट (Zero-G Research Flight) में हिस्सा लिया। इसे 'वॉमिट कॉमेट' भी कहा जाता है। हैंस ने ही उन्हें जर्मन कंपनी OHB से डोनेशन दिलाने में मदद की। ये एक्सपीरियंस माइक्रोग्रैविटी (स्पेस) में उनके शरीर की प्रतिक्रिया को समझने के लिए था। इस दौरान वे एस्ट्रो एक्सेस (Astro Access) एंबेसडर चुनी गईं। फिर उनकी दूसरी जीरो-ग्रैविटी फ्लाइट क्रू में शामिल हुईं। इसके बाद अप्रैल, 2024 पोलैंड की Lunares Research Station में एनालॉग एस्ट्रोनॉट मिशन में मिशन कमांडर के रूप में हिस्सा लिया। यह 2 सप्ताह की आइसोलेशन एक्सरसाइज थी। इसमें उन्होंने इंटरनेशनल टीम के साथ काम किया। ये दुनिया का पहला व्हीलचेयर-एक्सेसिबल एनालॉग स्पेस हैबिटेट था, जिसे स्पेस मिशन्स की तर्ज पर डेवलप किया गया था। कॉर्मन लाइन पार करने वाली पहली व्हीलचेयर यूजर हैंस ने मिशाइला से प्रभावित होकर एयरोस्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन से संपर्क किया। ये कंपनी सबऑर्बिटल टूरिज्म कराती है। ब्लू ओरिजिन ने पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया और ये मिशन पॉसिबल हुआ। ब्लू ओरिजिन के न्यू शेपर्ड NS-37 मिशन पर मिशाइला अंतरिक्ष पहुंचीं, जहां वे कार्मन लाइन पार करने वाली पहली व्हीलचेयर यूजर बनीं। यह 10-12 मिनट की सबऑर्बिटल फ्लाइट थी, जिसमें माइक्रोग्रैविटी का एक्सपीरियंस हुआ। एक सीट की कीमत 5 लाख डॉलर से ज्यादा की मिशाइला की फ्लाइट को ऑर्गनाइज करने में हैंस का मेन रोल था। यहां तक कि वो मिशाइला के साथ मिशन पर गए। उन्होंने ब्लू ओरिजिन के साथ मिलकर उनकी सीट को स्पॉन्सर किया। इसके टिकट की कीमत सार्वजनिक नहीं है, लेकिन अनुमानित रूप से इसकी कीमत $500,000 से ऊपर होगी। फ्लाइट के दौरान हैंस मिशाइला के पास बैठे थे और इमरजेंसी में मदद के लिए ट्रेनिंग ली थी। माइक्रोग्रैविटी में मिशेला की लेग्स को सिक्योर रखने के लिए स्पेशल स्ट्रैप्स लगाए गए, लेकिन अगर जरूरत पड़ती तो हैंस मदद करते। --------------------- ये खबर भी पढ़ें... ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के शिल्पकार राम सुतार का निधन: बढ़ई परिवार में जन्मे, पिता से छेनी-हथौड़ी चलाना सीखा; 1,150 से ज्यादा मूर्तियां बनाईं ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ जैसी विशालकाय मूर्तियों के रचयिता राम वानजी सुतार का गुरुवार, 18 दिसंबर को निधन हो गया। वो 100 साल के थे और कुछ समय से बीमार चल रहे थे। सुतार ने संसद भवन परिसर में ध्यान मुद्रा में बैठे महात्मा गांधी की मूर्ति और दिल्ली में घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी की मशहूर प्रतिमा भी बनाई थी। सुतार का मतलब कारपेंटर होता है। पढ़ें पूरी खबर...



