प्राकृतिक ज्ञान परंपरा और आधुनिक प्रौद्योगिकी का एकीकरण समय की आवश्यकता: राज्यपाल
- Admin Admin
- Dec 04, 2025
जयपुर/जोधपुर, 4 दिसंबर (हि.स.)। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान तभी पूर्णता प्राप्त करेगा जब वह भारतीय ज्ञान परम्परा और प्राचीन वैज्ञानिक अवधारणाओं के साथ समन्वित रूप से आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक दृष्टि और आधुनिक शोध की सम्मिलित दिशा नवाचार तथा मानव कल्याण के नए आयाम प्रस्तुत कर सकती है।
बागडे गुरुवार को मारवाड़ इंटरनेशनल सेंटर, जोधपुर में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के वनस्पति विज्ञान विभाग (यूजीसी-सीएस) द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
राज्यपाल बागडे ने कहा कि पेड़-पौधे संवेदनशील जीव हैं, वे ताप,आर्द्रता, प्रकाश, रोग तथा पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। उन्होंने कहा कि पौधों में जीवन, चेतना और संवेदनाएँ विद्यमान होती हैं, तथा वे विभिन्न परिस्थितियों के अनुरूप वैज्ञानिक ढंग से कार्य करते हैं। उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि वृक्ष अपनी जड़ों द्वारा जल ग्रहण करते हैं और रोग होने पर जड़ों में औषधि के प्रयोग से उपचार संभव होता है, जो उनकी संवेदनात्मक एवं जीववैज्ञानिक संरचना का स्पष्ट संकेत है।
राज्यपाल ने वैदिक काल से भारत में वनस्पति विज्ञान की उन्नत परंपरा का उल्लेख करते हुए महर्षि पाराशर के ‘वृक्ष आयुर्वेद’ का संदर्भ दिया। उन्होंने कहा कि प्रोटोप्लाज्म, कोशिका झिल्ली तथा ऊर्जा निर्माण के तत्वों का वर्णन प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है, जिनकी वैज्ञानिक पुष्टि सैकड़ों वर्ष बाद आधुनिक विज्ञान ने की। यह भारतीय वैज्ञानिक विरासत के गहन अध्ययन की आवश्यकता को सिद्ध करता है।
राज्यपाल ने कहा कि डीएनए, आरएनए, प्रोटीन संरचना एवं आणविक तकनीकों के वर्तमान शोध में भारतीय पारंपरिक वनस्पति व्याख्या उपयोगी आधार प्रदान कर सकती है। उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया कि वे भारतीय ज्ञान परम्परा और आधुनिक तकनीक के समन्वित अध्ययन के लिए अनुसंधान-आधारित शैक्षणिक ढांचा विकसित करें। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि विश्वविद्यालय के पादप विज्ञान विभाग में प्राचीन वनस्पति शोध और आधुनिक आणविक अध्ययन का एकीकृत शोध कार्यक्रम प्रारंभ किया जाए।
राज्यपाल ने पर्यावरणीय परिवर्तन, ऊर्जा संकट और जैविक विविधता संरक्षण की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन समस्याओं के समाधान में कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। उन्होंने वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं से आग्रह किया कि वे भविष्यगत आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए शोध के मूल्यों को समाजहित और प्रकृति संरक्षण के साथ जोड़ें।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश



