श्रद्धा और प्रेम के संयोग से भक्ति का प्रादुर्भाव : गोपाल कृष्ण दुबे

--हिन्दुस्तानी एकेडेमी में हुआ राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं ब्रज भाषी कवि सम्मेलन

प्रयागराज, 10 दिसम्बर (हि.स.)। हिन्दुस्तानी एकेडेमी उप्र प्रयागराज के तत्वावधान में बुधवार को एकेडेमी के गांधी सभागार में ‘कृष्ण भक्ति में ब्रज भाषा का योगदान’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं ब्रज भाषी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता गोपाल कृष्ण दुबे ने कहा कि श्रीकृष्ण भक्ति में ब्रजभाषा का योगदान, भक्ति का आश्रय स्थल मानव का हृदय है और भाषा अभिव्यंजना का माध्यम। श्रद्धा और प्रेम के संयोग से भक्ति का प्रादुर्भाव होता है। यूं तो कृष्ण भक्ति साहित्य का प्रणयन भारत का ही नहीं विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली व्रज है। जहां कि लीलाएं हैं, वहीं की भाषा में अधिक उदात्त, व्यापक, गहरी और तीव्रतम अभि-व्यंजना की जा सकती है, उसका सहज प्रष्फुटन और संचार किया जा सकता है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. बृजभूषण चतुर्वेदी वृन्दावन ने करते हुए कहा कि इसी के साथ कृष्ण की आल्हादीनी शक्ति श्री राधा के साथ उनके अलौकिक प्रेम और रास लीलाओं ने भी भक्तों को सम्मोहित सा रख दिया। कालांतर में कृष्ण की स्थिति राधा के बिना अधूरी हो गई और राधा ब्रज की भाव स्वरूपा बन के कृष्ण से भी अधिक मुखर हो उठीं। वर्तमान में कृष्ण के साथ राधा कृष्ण भक्ति के आलम्बन के रुप में ब्रज रसिकों के हृदयों में विद्यमान हैं। कृष्ण भक्ति से सम्बंधित रचनाएं अन्य अनेक भाषाओं में भी बहुतायत से लिखी गईं और लोकप्रिय भी हुईं। किन्तु ब्रजभाषा में रचित कृष्णभक्ति साहित्य देश-विदेश के भक्तों में सर्वाधिक विख्यात और समादृत हुआ।

डॉ. विजेन्द्र प्रताप सिंह अलीगढ़ ने कहा कि कृष्ण भक्ति साहित्य सृजन की प्रिय धारा आंदोलन की सबसे प्रभावशाली धारा भी मानी गई है। यह केवल आध्यात्मिक अनुभव ही नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागण, लोकसंस्कृति, संगीत, नृत्य, कला की बहुरंगी अभिव्यक्ति का भी महत्वपूर्ण आधार रही है। इस धारा के साहित्य और सांस्कृतिक विकास में ब्रजभाषा ने जो योगदान दिया वह अद्वितीय है।

सूरदास, नंददास, मीरा, रसखान, हितहरिवंश आदि कवियों ने ब्रजभाषा को कृष्ण भक्ति की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया। संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन एवं संचालन डॉ. अंजीव अंजुम ने कहा कि ब्रजभाषा में श्री कृष्ण की भक्ति के अनेक रूप दिखाई दिये हैं। संगोष्ठी के पश्चात् ब्रज भाषी कवि सम्मेलन आमंत्रित रचनाकारों में श्याम सुन्दर अकींचन मथुरा, डॉ. बृजभूषण चतुर्वेदी वृन्दावन, डॉ. अंजीव अंजुम मथुरा डॉ. रूचि चतुर्वेदी आगरा एवं पूनम शर्मा (पूर्णिमा) ने काव्यपाठ किया। श्रुतिकृति ने शोध पत्र का पाठ किया।

इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र त्रिपाठी ‘रसराज’, डॉ0 श्लेष गौतम, डॉ. अनूप कुमार, डॉ. अनिल, डॉ. विजयानन्द, डॉ. मनोज यादव, डॉ. उषा मिश्रा, ज्यातिर्मयी, प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. सरिता, अंकेश कुमार श्रीवास्तव, अनुराग ओझा, सुनील कुमार, अमित कुमार सिंह, मोहसीन खाँ, रामखेलावन, शशिपाल, ओम प्रकाश मौर्य, विजय बहादुर सिंह, सुनैना सिंह आदि उपस्थित रहे।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र