स्वच्छता के साथ समृद्धि : राज्य में बनेंगे 10 हजार नए गोबर गैस प्लांट
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- Oct 01, 2024
-गुजरात में गोबरधन योजना के तहत 7200 से अधिक बायोगैस प्लांट संचालित
अहमदाबाद, 1 अक्टूबर (हि.स.)। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) फेज-2 के अंतर्गत राज्य के 33 जिलों में से प्रत्येक क्लस्टर/जिले में 200 व्यक्तिगत बायोगैस प्लांट स्थापित किए गए हैं। राज्य में कुल 7600 बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लक्ष्य की तुलना में अब तक कुल 7276 बायोगैस प्लांट स्थापित किए जा चुके हैं।
बायोगैस प्लांट के कई तरह के फायदों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने 50 और क्लस्टरों के लिए 10,000 प्लांट स्थापित करने की योजना बनाई है। वर्ष 2022-23 में बायोगैस प्लांट के लिए प्रति जिला 50 लाख रुपये (केंद्र 60 फीसदी और राज्य 40 फीसदी के अनुपात में) का आवंटन किया गया था। वर्तमान में गुजरात में गोबरधन प्रोजेक्ट के तहत 97 फीसदी व्यक्तिगत बायोगैस प्लांट संचालित हैं। गोबरधन प्रोजेक्ट के तहत क्लस्टर बायोगैस प्लांट से संबंधित कार्य प्रगति पर है।
स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने गोबरधन योजना यानी गेल्वेनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन योजना कार्यान्वित की है, जो ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छता और टिकाऊ विकास पर ध्यान केंद्रित करती है। गोबरधन योजना के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकार की ओर से बायोगैस प्लांट की स्थापना के लिए 37,000 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। बायोगैस प्लांट के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों को वैकल्पिक ऊर्जा, स्वच्छ वातावरण, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि देश भर में जनभागीदारी के साथ स्वच्छता और सफाई कार्यक्रमों को तेजी देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 17 सितंबर से 31 अक्टूबर तक ‘स्वच्छता ही सेवा-2024’ अभियान का देशव्यापी शुभारंभ किया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में गुजरात के नागरिकों में ‘स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता’ की भावना को उजागर करने के उद्देश्य से स्वच्छता ही सेवा अभियान शुरू किया गया है, जिसके अंतर्गत राज्य में स्वच्छता से संबंधित विभिन्न गतिविधियां चलाई जा रही हैं। देश भर में चल रहे स्वच्छता ही सेवा अभियान के बीच गोबरधन योजना के अंतर्गत स्थापित बायोगैस प्लांट भी स्वच्छ ईंधन का उत्पादन कर स्वच्छ पर्यावरण में अपना योगदान दे रहे हैं।
क्या है गोबर (गेल्वेनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्जेज) धन योजना?
गोबरधन योजना भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए व्यापक बायोगैस कार्यक्रम का एक हिस्सा है। इस योजना को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग द्वारा 1 नवंबर, 2018 को शुरू किया गया था। गोबरधन योजना का उद्देश्य कचरे को कंचन में परिवर्तित करना अर्थात मवेशियों के गोबर, कृषि अवशेष एवं अन्य जैविक कचरे को बायोगैस, सीबीजी और बायो सीएनजी में परिवर्तित करना है। इस बायोगैस का उपयोग रसोई बनाने एवं बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। गोबरधन योजना के तहत कचरे के प्रभावी तरीके से प्रबंधन के साथ-साथ नवीनीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को समर्थन भी मिलता है, स्वच्छता में वृद्धि होती है, किसानों को आय का एक नया स्रोत मिलता है तथा टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहन मिलता है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए व्यक्ति के पास दो से अधिक पशुधन होना आवश्यक है।
बायोगैस प्लांट के लिए प्रोत्साहन
बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा प्रति यूनिट 37,000 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। प्रत्येक 2 घन मीटर क्षमता वाले बायोगैस प्लांट के लिए लाभार्थी का अंशदान 5000 रुपये, केंद्र औ राज्य सरकार का अंशदान 25,000 रुपये और मनरेगा का अंशदान (बायोगैस प्लांट के गड्ढे और स्लरी (घोल) एकत्रीकरण के लिए) 12,000 रुपये निर्धारित किया गया है। यानी, एक बायोगैस प्लांट 42,000 रुपये के खर्च पर तैयार होता है और लाभार्थी को इसके लिए केवल 5000 रुपये का निवेश करना पड़ता है। बायोगैस प्लांट के लिए बनास डेयरी, साबर डेयरी, दूध सागर और अमूल डेयरी के अलावा राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है।
ईंधन की बचत के साथ-साथ स्वाद भी बढ़ा
जैविक कचरे से उत्पन्न होने वाली बायोगैस का उपयोग रसोई बनाने के लिए किया जा सकता है। इससे ईंधन की बचत तो होती ही है, साथ ही रसोई का स्वाद भी बढ़ जाता है। साबर डेयरी के सर्वेक्षण के अनुसार शत-प्रतिशत परिवारों ने यह माना कि बायोगैस से बने भोजन का स्वाद ज्यादा अच्छा है। 87 फीसदी परिवारों का मानना है कि लकड़ी या एलपीजी गैस की तुलना में बायोगैस से भोजन तैयार करने में उल्लेखनीय रूप से कम समय लगता है। बायोगैस से भोजन पकाने का एक और फायदा यह है कि खाना बनाने के बाद बर्तन साफ करना और भी आसान हो जाता है। खास बात यह है कि बायोगैस प्लांट के उपयोग से स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बायोगैस प्लांट की स्थापना से पहले लोगों को रसोई घर में धुएं, आंखों के संक्रमण, श्वसन संक्रमण, मच्छर और मक्खियों द्वारा फैलने वाले रोगों का सामना करना पड़ता था। हालांकि, बायोगैस प्लांट की स्थापना के बाद स्वास्थ्य से संबंधित इन समस्याओं में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है।
पैसे की बचत के साथ ही आय के नए स्रोत पैदा हुए
प्राकृतिक रूप से उत्पन्न बायोगैस के उपयोग से एलपीजी सिलेंडर पर होने वाला खर्च कम हो गया है तो लकड़ी जलाने के कारण धुएं से पैदा होने वाला प्रदूषण भी रुक गया है। बायोगैस प्लांट से बाहर आने वाला घोल (स्लरी) दुर्गंध रहित होता है, जिसका जैविक खाद के रूप में उपयोग कर किसान जैविक खेती कर सकते हैं। इस जैविक खाद को बेचने के लिए सहकारी समिति बनाई जा सकती है, जिससे आय में वृद्धि होगी। स्वयं सहायता समूहों की खाद समितियों के माध्यम से महिलाएं आत्मनिर्भर बनी हैं और उन्हें रोजगार के नए अवसर मिले हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय