गुरुग्राम के दस प्रतिशत ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की सुनने की क्षमता कमजोर

-ड्यूटी के दौरान वाहनों के शोर-शराबे से पुलिसकर्मी हुए प्रभावित-बच्चों से लेकर उम्रदराज व्यक्तियों में भी सुनने की क्षमता पर पड़ा रहा प्रतिकूल प्रभाव

गुरुग्राम, 8 मार्च (हि.स.)। गुरुग्राम में यातायात पुलिसकर्मियों के लिए यह खतरे की घंटी है कि अत्यधिक समय तक वाहनों की तेज आवाज के बीच रहने से उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। यहां के 10 प्रतिशत यातायात पुलिसकर्मियों में यह समस्या दर्ज की गई है।

शनिवार को विश्व श्रवण दिवस पर ईएनटी एसोसिएशन गुरुग्राम की ओर से एओआई हरियाणा के साथ मिलकर ट्रैफिक पुलिस के लिए ध्वनि प्रदूषण जागृति कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान उनकी चिकित्सीय जांच भी की गई। इस अवसर पर 112 ट्रैफिक पुलिस कर्मियों का नि:शुल्क श्रवण परीक्षण हियरक्लियर, ऑडियो स्पीच और मीनाक्षी हियरिंग एड कंपनियों के ऑडियोलॉजिस्ट द्वारा किया गया। इसमें पता चला कि 10 प्रतिशत यातायात पुलिसकर्मियों की सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। सभी को सलाह दी गई कि ट्रैफिक पुलिस जैसे हाई रिस्क लोगों को नियमित श्रवण परीक्षण करते रहना चाहिए। यहां बताया गया कि 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में 50 प्रतिशत तक सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है। कोविड के बाद से तो बच्चों में भी श्रवण क्षमता प्रभावित हो रही है।

इस दौरान नेशनल इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड की संयोजक डॉ. सारिका वर्मा ने ध्वनि प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने अत्यधिक हॉर्न बजाने और लंबे समय तक हेडफोन के उपयोग पर विशेष जोर दिया गया।

उन्होंने कहा कि भारतीय शहर दुनिया के सबसे शोर वाले शहरों में से हैं। ईएनटी डॉक्टर शोर के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से व्यवहार में बदलाव को प्रोत्साहित करते हैं। शोर की वजह से बहरापन, टिनिटस, चिंता, हृदय संबंधी स्थिति और अवसाद शामिल हैं। जब दुनिया भर में लोग हॉर्न का उपयोग किए बिना गाड़ी चला सकते हैं, तो हम क्यों नहीं। भारतीय शहरों को दिन में 55 डीबी और रात में 40 डीबी के परिवेशी शोर के डब्ल्यूएचओ दिशा-निर्देशों का पालन करने का लक्ष्य रखना चाहिए। भारतीय सडक़ों और बाजारों में अक्सर 100 डीबी का शोर स्तर होता है, जो ध्वनि जोखिम की निर्धारित ऊपरी सीमा से 1000 गुना अधिक है। इसी कारण भारत में 50 प्रतिशत से अधिक वरिष्ठ नागरिकों को महत्वपूर्ण सुनने में दिक्कत रहती है।

उन्होंने कहा कि ईयर फोन लगाना खतरनाक है। उससे जोर-जोर से संगीत या अन्य कार्यक्रम सुनना हमारी श्रवण क्षमता को प्रभावित करता है। तेज संगीत कान की नसों को डैमेज करता है, जो कि वापिस ठीक नहीं की सकती।

हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर

   

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