धर्म की सूक्ष्मता पर गूढ़ संदेश, श्रोताओं को किया भावविभोर

कठारी गांव में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन धर्म-अधर्म पर मिला गहन ज्ञान

मीरजापुर, 14 मई (हि.स.)। ड्रमंडगंज क्षेत्र के कठारी गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में बुधवार को कथा के चौथे दिन भागवताचार्य बद्रीश महाराज ने श्रोताओं को धर्म और अधर्म की सूक्ष्म रेखाओं से परिचित कराया। उनके ओजस्वी प्रवचनों ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।

बद्रीश महाराज ने कहा कि धर्म की गति अत्यंत सूक्ष्म है, इसे जानना अत्यंत कठिन है। लोग केवल बाह्य रूप देखते हैं, जबकि धर्म का वास्तविक स्वरूप अंतरात्मा की शुद्धता और उद्देश्य की पवित्रता में निहित है। उन्होंने श्रीराम के अवतार की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान राम का उद्देश्य असुर वध नहीं, बल्कि मानव मूल्यों की स्थापना और आदर्श जीवन का मार्गदर्शन था।

महाराज ने राजा परीक्षित की गर्भस्थ अवस्था में भगवान द्वारा रक्षाकथा सुनाकर धर्म के मूल स्वरूप को उजागर किया। उन्होंने बताया कि भगवान की छाती से धर्म और पीठ से अधर्म उत्पन्न हुआ—यह दर्शाता है कि धर्म सदैव आगे होता है, अधर्म पीछे।

उन्होंने उदाहरणों से स्पष्ट किया कि कर्म से अधिक महत्वपूर्ण उसका उद्देश्य होता है। मंदिर बनाना धर्म है, लेकिन यदि उसका उद्देश्य गलत है, तो वह भी अधर्म का रूप ले लेता है। यज्ञ यदि किसी के अपमान के लिए किया जाए, तो वह पुण्य नहीं, पाप बन जाता है, उन्होंने दक्ष यज्ञ का उदाहरण देकर समझाया।

उन्होंने आह्वान किया कि अधर्मी को मारने की आवश्यकता नहीं, उसके भीतर के अधर्म को समाप्त करो। दूसरों को नीचा दिखाने से बेहतर है कि अपने आचरण को इतना ऊंचा बना लो कि वह स्वयं छोटा दिखाई दे।

इस अवसर पर यजमान मणि प्रसाद मिश्र सहित क्षेत्र के अनेक श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित रहे और अध्यात्म के इस अमृत को आत्मसात किया।

हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा

   

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