
जोधपुर, 27 जून (हि.स.)। गर्म दोपहर की धूप थी, लेकिन राजसागर गांव के पंचायत मुख्यालय में कुछ चेहरों पर उम्मीद की ठंडी छांव थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय संबल पखवाड़ा के अंतर्गत आयोजित शिविर में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसकी फाइलें बीते चार दशकों से बंद पड़ी थीं- खातेदार मूलाराम पुत्र भीखाराम मेघवाल निवासी राजसागर का इंतकाल मामला।
दरअसल मूलाराम का निधन वर्ष 1980 में हो गया था। उनके इकलौते पुत्र रावलराम की भी मृत्यु हो चुकी थी। तब से यह विरासत रिकॉर्डों में अधूरी थी, और परिवार को ज़मीन पर अधिकार तो था, लेकिन कागज़़ों में नहीं। शिविर में मूलाराम के पौत्र पुखराज ने जब आवेदन किया, तो राजस्व विभाग ने तत्परता और संवेदनशीलता से मौके पर ही जांच की। सभी दस्तावेज़ों और वारिसान की पुष्टि के बाद, पुखराज व उनकी बहनों के नाम पर विरासत का इंतकाल दर्ज कर दिया गया।
शिविर में जैसे ही यह घोषणा हुई, पुखराज की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि यह इंतजार हमने नहीं, हमारे पूरे परिवार ने किया था। आज इस शिविर में हमें न सिर्फ कागज़़ मिला, बल्कि सुकून मिला। मैं सरकार का दिल से आभार प्रकट करता हूं, यह पखवाड़ा हमारे लिए किसी सौगात से कम नहीं है। राजसागर ग्राम पंचायत में आयोजित यह शिविर उन हजारों ग्रामीणों के लिए उम्मीद की किरण है, जिनकी समस्याएं इन शिविरों के माध्यम वे सुलझ रही हैं।
70 साल बाद मिली अपने घर की पहचान
गांव वही था, घर भी वही लेकिन अजयपालसिंह के चेहरे पर जो मुस्कान थी, वो पहले कभी नहीं देखी गई थी। भैरूसागर ग्राम पंचायत में रहने वाले अजयपाल के लिए यह सुबह एक नई शुरुआत लेकर आई। सत्तर वर्षों से जिस पुश्तैनी घर में उनका परिवार रह रहा था, उस पर उन्हें पहली बार कानूनी अधिकार मिला वो भी भारत सरकार की स्वामित्व योजना और राजस्थान सरकार की संवेदनशील पहल के चलते। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय संबल पखवाड़ा 2025 के अंतर्गत आयोजित शिविर में अजयपालसिंह को सम्पत्ति कार्ड सौंपा गया। इससे पहले तक उनके पास घर का कोई वैध दस्तावेज़ नहीं था। बैंक से ऋण लेने में परेशानी होती, किसी योजना का लाभ नहीं मिल पाता। लेकिन अब उनके पास प्रमाण है, अधिकार है और आत्मसम्मान है।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश