साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज का अमृत प्रवचन: नाम ही मोक्ष का एकमात्र साधन

साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज का अमृत प्रवचन: नाम ही मोक्ष का एकमात्र साधन


जम्मू, 16 फ़रवरी । साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज ने आज मिश्रीवाला में अपने प्रवचनों से श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ज्ञान की वर्षा से निहाल करते हुए कहा कि उस नाम की ताकत से जीव कौवे से हंस समान होकर उस अमर लोक में जाता है। यह नाम गर्भ निवारक है। यानी फिर जीव दोबारा गर्भ में नहीं आता है। यह दावा है। सभी संत साहिब की वाणी का ही अनुकरण कर रहे हैं। साहिब कह रहे हैं कि पोथी पढ़ पढ़ कर लोग भूले हुए हैं। वो नाम सबसे न्यारा है। लोगों ने वेद पढ़े, पर उस भेद को नहीं जान पाए। वेदों के पढ़ने से उस भेद को नहीं जाना जा सकता है। आत्मा को जाने बिना कोई भी ज्ञानी नहीं है। उस एक को जानने के बाद कुछ जानना बाकी नहीं रहता है।

साफ सफाई से रहना, आचार सहिंता से रहना गलत नहीं है। पर कोई सोचे कि इससे मोक्ष मिल जायेगा तो नहीं। अँधकार को दूर करने का एक ही साधन है और वो है रोशनी। और कोई उपाय नहीं है। इस तरह भवसागर का पार नाम के बिना पाया ही नहीं जा सकता है। एक ही उपाय है-नाम। नाम मृत्यु का भय खत्म कर देगा। फिर वो बुरी बुद्धि को खत्म कर देगा। जो रात-दिन सुमिरन कर रहा है, वो फिर काल के जाल में नहीं आता है। सन्यासी कहता है कि – अहंब्रहस्मि। अगर तुम ही ब्रह्म हो तो माया में कैसे फँस गये। इसलिए कहा कि नाम उनसे भी न्यारा है। योगी योग साधना करता है, पर भवसागर से पार नहीं होता है। कितना भी योग, तप कर ले, काम नहीं बनेगा। साहिब कह रहे हैं कि बहुत सारे तपस्वियों ने तप किया, काया को गला दिया, पर पार नहीं हो सके। चाहे करोडों उपाय कर लो, पर नाम के बिना उसको नहीं पाया जा सकता है।

कोई कहे कि पानी को मथ कर घी निकाल दिया तो नहीं निकल सकता है। पर साहिब कह रहे हैं कि वो भी मान लूँगा, पर नाम के बिना संसार सागर से पार नहीं हो सकता है। अघोरी लोग घोर तपस्याएँ करते हैं। क्या जमीन के ऊपर रहने से प्रभु मिल जायेगा। नहीं मिलेगा। ये सब अनात्म हैं। जीव पर दया करना अच्छा है, सद्गुण भी अच्छे हैं। बहुत से लोग दुनिया में सत्यवान भी हैं। बहुत लोग कर्मठ भी हैं, दानी भी हैं। पर साहिब कह रहे हैं कि अनन्त धन दान में दे दे, करोड़ों बार तीर्थ कर ले, तभी भी नाम के बिना पार नहीं होगा। परमार्थ तो अच्छा है, पुरुर्षाथ भी अच्छा है, लेकिन कह रहे हैं कि इनसे पार नहीं होगा। अब विडंबना यह है कि आजकल कथावाचक भी नाम देते हैं, सतवा वाले भी नाम देते हैं, पर नाम तो संतों के पास है। यह रहस्य लोग नहीं जान पा रहे हैं।

   

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