लखनऊ, 03 जनवरी (हि.स.)। नेताओं के बीच घरेलू विवाद का बाहर आना राजनीति के लिए खतरे की घंटी है। सभी को याद है, जब सपा में अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच विवाद बढ़ा तो पार्टी नेता स्तब्ध हो गये थे और उसके बाद सपा अब तक उबर नहीं पायी। यही स्थिति वर्तमान में अपना दल (एस) और अपना दल (कमेरावादी) के बीच चल रहा है। कमेरावादी की विधायक पल्लवी पटेल ने आशीष पटेल पर ट्रांसफर घोटाला का आरोप लगाया। इसके बाद पल्लवी के वक्तव्य से उतने लोग घोटाले के बारे में समझ नहीं पाये, उससे ज्यादा लोगों को आशीष पटेल ने बता दिया। सोने लाल पटेल की विरासत की यह लड़ाई, अब उसको धीरे-धीरे पतन की ओर ले जा सकती है।गुरुवार को अपना दल द्वारा लखनऊ में की गयी सभा अपना वर्चस्व दिखाने से ज्यादा कुछ नहीं था। उसमें भी आशीष पटेल का खुल्लम खुल्ला घरेलू विवाद मुंह से निकल पड़ा। वहीं केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया ने संकेतों के माध्यम से अपनी नजदीकी की चर्चा करते रहे। मंच से की गयी यह चर्चा अपना दल समर्थकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। विशेष जाति के लोग अब भी पल्लवी और अनुप्रिया में बंटे हुए नजर आते हैं।
अपना दल (एस) के संगठन से जुड़े एक नेता ने (नाम न छापने की शर्त पर) कहा कि आखिर अनुप्रिया ने अपने परिवार के साथ तो शुरु में अन्याय किया ही है। पल्लवी को सपा ने सहारा दिया और वह उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को हराकर विधानसभा में आ गयीं। इसके बाद घरेलू विवाद को धरातल पर आना लाजिमी था। जैसे ही पल्लवी को समकक्षता जैसा एहसास हुआ। उन्होंने सपा से बगावत कर भाजपा के नजदीक आने की कोशिश की। यह अनुप्रिया के लिए और अधिक कष्टप्रद हो गया।
अब पल्लवी द्वारा लगाया गया आरोप परिवारिक पार्टी में आशीष पटेल के लिए सिरदर्द बन गया है। इससे उनको अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है। यही कारण है कि उन्होंने एक बार शक्ति प्रदर्शन कर गुरुवार को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। यह कोशिश दूसरों के लिए नहीं, भाजपा के लिए माना जा रहा है, जिससे भाजपा में अनुप्रिया की अहमियत कम न हो और अनुप्रिया साथ बनी रहें।
इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हर्ष वर्धन त्रिपाठी का कहना है कि परिवारवादी पार्टियों में हमेशा यही होता आया है। यही कारण है कि कुछ समय बाद विरासत की लड़ाई में खुद ये पार्टियां समाप्त हो जाती हैं। इसके बाद दूसरी पार्टी का जन्म होता है। यह सिलसिला चलता ही रहना है। वर्तमान में अपना दल के दोनों धड़ों के बीच भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, लेकिन अभी इसमें समय लगेगा। अनुप्रिया की पार्टी इतनी जल्दी नहीं समाप्त होने वाली है। उनका जनाधार अभी भी है।
हिन्दुस्थान समाचार / उपेन्द्र नाथ राय