चिता भस्म की होली में देवी—देवताओं का स्वांग रचाकर न आए कलाकार: गुलशन

—देश के अन्य श्मशान घाटों से काशी के मणिकर्णिकाघाट महाश्मशान की बात अलग,काशी में मृत्यु भी मंगलकारी

वाराणसी,04 मार्च (हि.स.)। रंगभरी एकादशी (10 मार्च) के दूसरे दिन 11 मार्च को काशी के महाश्मशानघाट पर परम्परानुसार चिता भस्म की होली खेली जाएगी। चिता भस्म होली के आयोजक व मणिकर्णिका घाट स्थित बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने मंगलवार को पराड़कर भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में यह जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि काशी में इस होली की अनादिकाल से परम्परा है। काशी में मान्यता है कि महादेव रंगभरी एकादशी पर अपने गौना में देवताओं के साथ होली खेलने के बाद अपने गणों,भूत,प्रेत,पिशाच, दृश्य- अदृश्य, शक्तियों के साथ होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं। इसी परम्परा का निर्वाह रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देने से इसकी चर्चा पूरे देश और दुनिया में हो रही है। गुलशन कपूर ने बताया कि कुछ लोग इस चिता भस्म की होली में पिछले वर्ष हुए हुड़दंग और जूता चप्पल फेंकने की घटना को लेकर इसके आयोजन पर सवाल उठा रहे हैं। इस पर हमारा कहना है कि भीड़ में शामिल कुछ अराजक तत्वों ने यह कृत्य किया। इसकी भी जानकारी हम लोगों ने प्रशासन को पहले ही दी थी। जहां तक चिता भस्म से होली खेलने की बात है तो उज्जैन महाकाल मंदिर में इसका प्रयोग बाबा के आरती में भी होता हैं । महादेव का प्रिय श्रृंगार भी चिता भस्म ही है। देश के अन्य श्मशानघाटों या स्थानों की तुलना काशी के मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिकाघाट से करना बेमानी है । काशी में तो मृत्यु भी मंगलकारी मानी जाती है। यहां भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देते हैं। यहां मृत्यु भी उत्सव की तरह मनाया जाता है। ऐसा उत्सव देश के दूसरे हिस्से में नही होगा। यहां चिता भस्म को अबीर और गुलाल की भांति एक दूसरे पर फेंककर सुख, समृद्धि और वैभव के साथ ही शिव की कृपा पाने की लोग कामना करते है।

गुलशन कपूर ने कहा कि चिता भस्म को घर में नहीं ले जाना चाहिए। महिलाओं का इस होली में स्वागत है। लेकिन उन्हें भी दूर से ही चिता भस्म की होली देखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि चिता भस्म की होली में कुछ कलाकार देवी—देवताओं का स्वांग रचा घाट पर अपने से आ जाते है। यह अशोभनीय कृत्य है। ऐसे में हमारा उनसे अनुरोध है कि घाट पर देवी देवता का स्वरूप धारण कर न आए। आयोजन से जुड़े साक्ष्य मांगा जाने के सवाल पर गुलशन कपूर ने कहा कि परम्परा का साक्ष्य नहीं दिया जा सकता। आयोजन को लेकर सवाल उठा रहे लोग भी हमारे शुभचिंतक ही है। गुलशन कपूर ने कहा कि पिछले 24 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर हमलोगों ने दुनिया के कोने कोने तक जन सहयोग से पहुंचाया है। इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं । जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। लोग इस अद्भुत,अकल्पनीय होली को देखकर,खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर जाते है। इस बार दिव्य से भव्य आयोजन की पूरी तैयारी है। वार्ता में पं. विजय शंकर पाण्डेय, संजय प्रसाद गुप्ता, दीपक तिवारी, करन जायसवाल, हंसराज चौरसिया आदि भी मौजूद रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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