पंचनद: 1857 के क्रांतिवीर को मशाल सलामी

औरैया, 24 नवम्बर (हि. स.)। 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा गढ़िया कालेश्वर मंदिर के प्रधान पुजारी कुट्टी बक्स को आगामी 26 नवंबर, संविधान दिवस के अवसर पर पंचनद तट पर पूरी श्रद्धा से मशाल सलामी दी जाएगी। इसके लिए दिन-रात जनसंपर्क अभियान चल रहा है। चंबल म्यूजियम में मशाल निर्माण की तैयारियां जोरों पर हैं। इस मुहिम से बीहड़ी अंचल के छात्र-युवाओं को जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं।

- पंचनद का महाकालेश्वर मंदिर: स्वतंत्रता संग्राम का गवाह

महाकालेश्वर मंदिर स्वतंत्रता संग्राम के रणबांकुरों की शरणस्थली और साहसिक कारनामों का साक्षी रहा है। प्रधान पुजारी गुंसांई सूजादेह नसीम कुट्टी बक्स को 1857 की क्रांति का अमूल्य कोहिनूर माना जाता है।

चकरनगर रियासत के राजा कुशल सिंह चौहान, युवराज निरंजन सिंह चौहान और भरेह रियासत के राजा रूप सिंह सेंगर ने 31 मई 1857 को स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी थी। जनता का समर्थन मिलने से पंचनद घाटी क्षेत्र ब्रिटिश दासता से पूरी तरह मुक्त हो गया था।

- ब्रिटिश सैन्य अभियान और पुजारी कुट्टी बक्स की रणनीति

अगस्त 1858 में, ब्रिटिश सेना ने पंचनद घाटी के क्रांतिकारियों को हराने के लिए व्यापक सैन्य अभियान शुरू किया। गढ़िया कालेश्वर मंदिर के प्रधान पुजारी के पास 150 सशस्त्र सैनिक और 10 मील के दायरे में बंदूकधारी थे। क्रांतिकारियों के पास ब्रिटिश सेना के समान हथियार थे।

पुजारी कुट्टी बक्स ने मंदिर को क्रांति का केंद्र बनाया। यहां युद्ध की योजनाएं बनतीं और संचालन होता। पंचनद की भौगोलिक परिस्थितियां क्रांतिकारियों के लिए अनुकूल थीं। चाहे अंग्रेज जालौन, तातारपुर या आगरा-हनुमंतपुरा मार्ग से हमला करते, उन्हें हर बार कड़ा मुकाबला करना पड़ता।

- संघर्ष और बलिदान

10 अगस्त 1858 को ब्रिटिश सेना ने गढ़िया कालेश्वर मंदिर पर हमला किया। प्रधान पुजारी के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने भीषण प्रतिरोध किया। लेकिन अंततः अंग्रेजों ने मंदिर पर कब्जा कर लिया और कुट्टी बक्स को बंदी बना लिया।

इटावा में उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला। हालांकि, ब्रिटिश सरकार उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं पेश कर पाई, और अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।

स्वतंत्रता संग्राम नायकों की स्मृतियों को जीवंत रखना हमारा दायित्व

चंबल संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राना ने कहा, “पंचनद घाटी के महान योद्धाओं की कहानियां आज भी प्रेरणा देती हैं। यह मशाल सलामी उनकी स्मृतियों को जीवंत रखने का प्रतीक है।”

उन्होंने बताया कि पूर्व में पंचनद दीप महापर्व के दौरान जीता चमार और सूबेदार मेजर अमानत अली जैसे योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी गई थी। इस बार संविधान दिवस पर कुट्टी बक्स की स्मृति में मशाल सलामी दी जाएगी।

-मशाल निर्माण में सहयोग

मशाल निर्माण में मनोज सोनी, राजेश सक्सेना, शिवपाल सिंह परिहार, सुनील पंडित, इंद्रभान सिंह परिहार, एहसान कुरैशी, कल्लू यादव, देवेंद्र सिंह, शाहिद चिश्ती, आदिल खान, विकास सिंह चौहान, पूरन सिंह परिहार आदि सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

इतने वर्षों बाद भी इन महान क्रांतिकारियों की स्मृतियों को संरक्षित करने के लिए प्रयास नहीं हुए। यह मशाल हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी का प्रतीक है, डॉ. राना ने कहा।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील कुमार

   

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