बसंत पंचमी ज्ञान और शक्ति का संगम: कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा
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- Feb 02, 2025
—पर्व पतझड़ के बाद नई सृष्टि का प्रतीक ऋतु है,माँ सरस्वती की पूजा से हमारे भीतर नई शक्ति का अर्जन
वाराणसी,02 फरवरी (हि.स.)। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि बसंत पंचमी भारतीय ज्ञान परम्परा का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें मां शारदा की कृपा विद्वानों, विद्यार्थियों पर विशेष रूप से होती है। यह पर्व बसंत ऋतु में मनाया जाता है, जो पतझड़ के बाद नई सृष्टि की प्रतीक ऋतु है। रविवार को कुलपति विश्वविद्यालय में सरस्वती पूजा/वसंतोत्सव के आयोजन का जायजा लेने के बाद विद्यार्थियों को पर्व की विशिष्टता बता रहे थे। विश्वविद्यालय परिसर स्थित वाग्देवी मन्दिर में मुख्य कार्यक्रम होगा। पूर्वांह 11 बजे से सरस्वती पूजन,संगीत विभाग की छात्राएं मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत करेंगी। कुलपति ने पर्व के पूर्व संध्या पर कहा कि
बसंत ऋतु में ज्ञान की देवी, विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा का विधान है। बसंत ऋतु में प्रकृति के नवांकुरों को देखकर स्वाभाविक रूप से नई चेतना और नई उमंग का भाव लेकर आगे बढ़ता है, लेकिन इस उमंग और चेतना को सही दिशा में ले जाने के लिए ज्ञान आवश्यक है। इसीलिए हमारे यहां बसंत ऋतु में ज्ञान की देवी, विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा का विधान है।
—माँ सरस्वती की पूजा से हमारे भीतर नई शक्ति का अर्जन होता है
कुलपति ने बताया कि माँ सरस्वती की पूजा से हमारे भीतर नई शक्ति का अर्जन होता है, और उस शक्ति पर बुद्धि का नियंत्रण होता है। जब शक्ति पर बुद्धि का नियंत्रण रहता है, तो रचनात्मकता स्वाभाविक रूप से चली आती है। उन्होंने कहा कि हमारे देश की परम्परा रही है कि हमारी शक्ति हमारी बुद्धि से नियंत्रित होती है। इसीलिए बसंत पंचमी का पर्व हमें ज्ञान और शक्ति के संगम की याद दिलाता है। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि हमारी शक्ति को हमारी बुद्धि से नियंत्रित करना आवश्यक है, ताकि हम रचनात्मकता और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ सकें। बसंत पंचमी के अवसर पर माँ सरस्वती की पूजा की जाती है, जो ज्ञान, कला और संगीत की देवी हैं। यह दिन शिक्षा, संस्कृति और कला के क्षेत्र में नए संकल्पों और प्रेरणाओं का प्रतीक है।
उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती जी की पूजा करने से ज्ञान, कला और संगीत में प्रगति होती है। यह दिन शिक्षा, संस्कृति और कला के क्षेत्र में नए संकल्पों और प्रेरणाओं का प्रतीक है। इस अवसर पर हमें माँ सरस्वती की पूजा करनी चाहिए और ज्ञान, कला और संगीत में प्रगति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। हमें अपने जीवन में शिक्षा, संस्कृति और कला के महत्व को समझना चाहिए और इन क्षेत्रों में प्रगति के लिए काम करना चाहिए।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी