बस्तर दशहरा मावली परघाव पूजा विधान में माता मावली की डोली व छत्र काे मां दन्तेश्वरी मंदिर में किया गया स्थापित

जगदलपुर, 12 अक्टूबर (हि.स.)। रियासतकालीन बस्तर दशहरा के मावली परघाव में शामिल होने के लिए दंतेवाड़ा से जगदलपुर पहुंची माता मावली की डोली और दंतेश्वरी के छत्र का बस्तर वासियों ने आज शनिवार रात्री में भव्य स्वागत किया। मावली माता की डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जिया डेरा से दंतेश्वरी मंदिर तक पहुंचाने में हजारो लोग सड़क के दोनों ओर मौजूद रहे। बस्तर दशहरा के मावली परघाव में अगुवानी राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव, कुवंर परिवार, जनप्रतिनिधि, राजपुरोहित ने किया। बस्तर दशहरा का सबसे महत्वपूर्ण विधान मावली परघाव में बस्तर संभाग के 194 गांव के देवी-देवता बाजे-गाजे के साथ शामिल हुए । इस दाैरान माता मावली के डाेली के आगे देवी-देवताओं के काफिला की भव्यता और विहंगम दृश्य आकर्षक हाेता है।परंपरानुसार बस्तर दशहरा के मावली परघाव में भव्य स्वागत के बाद मां दन्तेश्वरी मंदिर में माता मवली की डाेली काे लाकर स्थापित किया गया ।

माता मावली की डोली तथा मां दंतेश्वरी का छत्र बीती रात दंतेवाड़ा से जगदलपुर पंहुचने पर नियत स्थान जिया डेरा में स्थापित किया गया था। जिसके बाद आज शनिवार रात्रि में परंपरानुसार मावली परघाव में भव्य स्वगत के बाद मां दन्तेश्वरी मंदिर में लाकर स्थापित किया गया। मंदिर में 18 अक्टूबर तक मावली माता की डोली और दंतेश्वरी के छत्र के दर्शन होंगे, 19 अक्टूबर को मावली माता की विदाई के भव्य आयोजन के साथ वापस दंतेवाड़ा रवाना होगी।

राजगुरू नवीन ठाकुर ने बताया कि मावली देवी की अगुवानी या स्वागत को स्थानीय बोली में मावली परघाव कहा जाता है। उन्होने बताया कि मावली परघाव पूजा विधान में दंतेवाड़ा में नए कपड़े में चंदन का लेप देकर मावली की मूर्ति बनाकर पुष्पाच्छादित किया जाता है। इस मूर्ति को ही डोली में विराजित कर दंतेवाड़ा से जगदलपुर लाया गया। माता मावली अपने साथ नए अन्न भी लाई है। इस अन्न से ही बस्तर राजपरिवार कुम्हड़ाकोट जंगल में साेमवार 14 अक्टूबर को नवाखानी त्यौहार मनाएगा जाएगा।

हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे

   

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