वैशाख पूर्णिमा का व्रत करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता

Rohit


जम्मू। 10 मई । वैशाख पूर्णिमा का सनातन धर्म में अत्यंत महत्व है। इस विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष, महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने जानकारी देते हुए बताया कि वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 11 मई, रविवार रात्रि 8:02 बजे प्रारंभ होकर 12 मई, सोमवार रात्रि 10:25 बजे समाप्त होगी। अतः वैशाख दिवा एवं रात्रि पूर्णिमा व्रत 12 मई, सोमवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के श्रीसत्यनारायण स्वरूप की पूजा एवं कथा का श्रवण अथवा पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। साथ ही, भगवान श्रीगणेश, माता पार्वती, भगवान शिव तथा चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व है।

शास्त्रों के अनुसार, इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तामसिक वस्तुओं के सेवन से पूर्णतः बचना चाहिए। मादक पदार्थों का सेवन निषिद्ध है, क्योंकि इसका नकारात्मक प्रभाव शरीर ही नहीं, भविष्य पर भी पड़ सकता है। सात्विक भोजन ग्रहण करना इस दिन विशेष पुण्यदायी होता है। इस दिन तीर्थ स्थलों, विशेषकर गंगा स्नान का अत्यंत महत्व है, जिससे जन्मों के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। यह तिथि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण हुआ था। अतः यह दिन श्री बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि वैशाख पूर्णिमा को सत्य विनायक पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखने से दरिद्रता दूर होती है, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही, धर्मराज गुरु की कृपा प्राप्त होती है जिससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपने परममित्र ब्राह्मण सुदामा को इस व्रत का विधान बताया था, जिसके पालन से सुदामा की दरिद्रता दूर हुई। इस दिन जल से भरे घड़े, पकवान आदि का दान किसी ज़रूरतमंद को करना चाहिए। स्वर्णदान का भी विशेष महत्व बताया गया है।

पूजन विधि के अंतर्गत दिन में भगवान विष्णु की पूजा तथा रात्रि में दीप, धूप, पुष्प, अन्न, गुड़ आदि से पूर्ण चंद्रमा की पूजा कर उन्हें जल अर्पित करना चाहिए। तत्पश्चात किसी योग्य ब्राह्मण को जल से भरा घड़ा दान करना एवं उन्हें भोजन कराकर ही स्वयं अन्न ग्रहण करना चाहिए। इस दिन किए गए पुण्य कार्यों जैसे—पक्षियों को पिंजरे से मुक्त करना, गरीबों को भोजन एवं वस्त्र दान करना—अत्यंत फलदायी माने गए हैं। बौद्ध धर्म में 'ॐ मणि पद्मे हूं' मंत्र को अत्यंत पवित्र व शक्तिशाली माना जाता है। विशेषकर महायान शाखा में इस मंत्र का जाप अत्यंत महत्व रखता है।

   

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