जयपुर के बाजारों में मिट्टी के रंग-बिरंगे दीपक बिकने के लिए तैयार

Colourful earthen lamps are ready for sale in the markets of Jaipur

जयपुर, 30 अक्टूबर (हि.स.)। रोशनी और दीपों का पर्व दीपावली का एक दिन शेष रह गया है और इसको लेकर शहर के हर वर्ग के लोगों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। जहां एक तरफ धन लक्ष्मी के आगमन की तैयारियों को लेकर गृह लक्ष्मी घर की सफाइयों में जुटी है तो वहीं जयपुर के हर छोटे-बड़े बाजारों में मिट्टी के रंग-बिरंगे दीपक दिख रहे , जिन्हें लोग खरीद रहे हैं। मााना जाता है कि कोई भी त्योहार हो, कुम्हारों के चाक और मिट्टी के बर्तनों के बिना पूरे नहीं होते। ऐसी मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

कुम्हार के चाक पर बने खास दीये दीपावली में चार चांद लगाते हैं। दीपावली का त्योहार को एक दिन शेष है। जिसके चलते बाजारों में मिट्टी के रंग बिरंगे दीपकों के ढेर लगे हुए है और लोग इन्हे खरीदते नजर आए रहे है।

पांच तत्वों से मिलकर बनता है मिट्टी का दीपक

मिट्टी का दीपक पांच तत्वों से मिलकर बनता है जिसकी तुलना मानव शरीर से की जाती है। पानी, आग, मिट्टी, हवा तथा आकाश तत्व ही मनुष्य व मिट्टी के दीपक में मौजूद होते हैं। दीपक जलाने से ही समस्त धार्मिक कर्म होते हैं। दीपावली के शुभ अवसर पर मिट्टी के दीयों का ही अत्यंत महत्व है। वास्तु शास्त्र में इसका महत्व इस बात से है कि यदि घर में अखंड दीपक को जलाने व्यवस्था की जाए तो वास्तु दोष समाप्त होता है।

100-120 रुपये में सौ दीये बेचते हैं

इन दिनों कुम्हार बिक्री के लिए अलग-अलग वैरायटी के दीपक तैयार करने में लगे हुए हैं। इस बार महंगाई के चलते मिट्टी के दीयों में बढोतरी की गई है। कुम्हार रमेश ने बताया कि बाजार में ग्राहकों को 100 रुपये से 120 रुपये में सौ दीये दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दीया बनाना ही परेशानी का सबब नहीं बल्कि बिक्री करने में भी काफी दिक्कतें होती है। लोग इतनी कम कीमत के बाद भी मोलभाव करते हैं।

त्योहार का असली मजा दीपक की रोशनी से

मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। रोशनी के त्योहार का असली मजा दीपकों की रोशनी से है, ना कि इलक्ट्रोनिक लड़ियों से। भगवान राम का स्वागत अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर ही किया था।

दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है

शास्त्रों के अनुसार सरसों और देशी घी डाल कर मिट्टी के दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और मच्छरों का नाश होता है। दीपावली पर सभी को मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए और लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।

ऐसे देते है मिट्टी को बर्तन का आकार

मिट्टी को बर्तन का आकार देने में तीन से चार दिन लगते है। मिट्टी को एक बर्तन में डाल कर भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है। लगभग 48 घंटे बाद उसे उस बर्तन से निकालकर गूंथकर सुखाया जाता है। इसके बाद अगले दिन उसे चाक पर चढ़ाया जाता है,जिसके बाद उसे घड़ा,सुराही,दीपक या अन्य किसी मिट्टी के बर्तन का आकार दिया जाता है।

मिट्टी के बर्तन को सूखने के बाद उसे पक्का करने के लिए आग पर पकाया जाता है। उसके बाद कई कारीगर उस पर रंग या अन्य कारीगर भी करते है। जिसके बाद वह बर्तन बाजार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है।

मिट्टी दीयों और मिट्टी से बने सामान की बढ़ी डिमांड

मिट्टी के दीये बेचने वाले दुकानदारों ने बताया कि इस बार की दिवाली पर काफी बिक्री होने उम्मीद है। उन्होंने बताया कि पिछली दिपावली पर तो जब वे घरों में दीये बेचने जाते थे। तब भी बहुत कम बिक्री हुई थी लेकिन इस बार तो लोग उनकी दुकान पर आकर दीयों के साथ साथ अन्य मिट्टी का सामान भी खरीद रहे हैं।

पंडित बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा आती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश

   

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