निंदा ऐसी मिठाई है जिसका हर बार स्वाद व फ्लेवर अलग होता है : विशुद्ध सागर

धमतरी, 12 नवंबर (हि.स.)। ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत प्रवचन हो रहा है। यहां पर संतों द्वारा प्रवचन दिया जा रहा है। मंगलवार काे संबोधित करते हुए संत विशुद्ध सागर ने कहा कि भक्ति निस्वार्थ होनी चाहिए। निंदा ऐसी मिठाई है जिसका हर बार स्वाद व फ्लेवर अलग होता है। हमें किसी भी जीव की निंदा नहीं करनी चाहिए। कई बार किसी की सच्ची बात बताएं तो वह भी निंदा होती है। बताई गई बात भले ही सत्य हो लेकिन बताने वाले में बुराई हो तो वह भी निंदा है।

उन्होंने कहा कि सत्य बात प्रमाणित न तो सत्य भी निंदा कहलाती है। सही बोलते हुए हमें अपना अन्त:करण कैसा है यह चिंतन करना चाहिए। सही बोलते हुए यदि हम गलत हैं, तो न बोलें। निंदा का कोई प्रायश्चित नहीं होता, जब निंदा अनेक लोगो के सामने की जाए तो पता नहीं निंदा कहा तक पहुंचेंगी। ऐसे में गुरु महाराज के सामने प्रायश्चित करें तो भी प्रायश्चित नहीं होता। निंदा से व्यक्ति की खराब हुई छवि नहीं बदल सकती। वास्तव में वास्तविकता से होते हुए हम कहां जा रहे हैं इस पर विचार करें। निंदा के पाप से हम मुक्त नहीं हो सकते। इस पाप से मुक्त होने मर्यादा व लोक स्वरुप का अनुशरण करना पड़ेगा। त्याग व बलिदान लोगों को जुड़ने का भाव पैदा करता है। निंदा करना लोक विरुद्ध कार्य हैं। निंदा करने से लोक बिगड़ता हैं, और ज्यादा शोषण करने से परलोक बिगड़ता है। लोक विरुद्ध कार्य से मुक्त होना पड़े ऐसा कार्य ही न करें। मंजिल पाने के लिए अनेक सहयोगियों की आवश्यकता पड़ती है। सहयोगियों के सहयोग का अनुशरण करना चाहिए। सबको एक-दूसरे के विकास के लिए मिल जाना चाहिए। सेवा करने वाले अनेक आत्माएं भव से मुक्त हो चुकी है। जन्म से व्यवस्था कुछ भी हो भाव और प्रयास सही होना चाहिए। चातुर्मास के दौरान विभिन्न आयोजनों में सहयोगियों के सहयोग के लिए किए गए सम्मान किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा

   

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