हिसार : कोई ऐसा मंदिर नहीं, जहां हनुमानजी विराजित न हो : डॉ. स्वामी उमानंद

कलश यात्रा के साथ जवाहर नगर हनुमान मंदिर का वार्षिक महोत्सव शुरु हिसार, 8 अप्रैल (हि.स.)। जवाहर नगर स्थित रामभक्त हनुमान मंदिर समितिके 30वें वार्षिक महोत्सव के उपलक्ष्य में ढोल-ढमाकों के साथ कलश यात्रा निकाली गई। दर्जनों महिलाओं ने सिर पर कलश उठाये यात्रा में भाग लिया। पूरा क्षेत्र जयश्रीराम व बजरंग बली के जयकारों से गूंज उठा। इस अवसर पर नगर पार्षद राजेश अरोड़ा रिंकू के अलावा मंदिर समिति की ओर से केके सेहरा, भगतचंद मेहता, प्रीतम छाबड़ा, हरबंस ग्रोवर, सुरेश बांगा, दीपक गौतम, विनोद बिश्नोई, ललित राठी, मोहित गांधी, राजकुमार तनेजा, रामसहाय कक्कड़, सुरेश जैन, ओमप्रकाश ग्रोवर, ललित सुखीजा, पं. भगवत प्रसाद, पं. प्रभु दयाल आदि भी उपस्थित रहे।मंदिर समिति के प्रधान इंद्रचंद राठी ने बताया कि दोपहर बाद महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद महाराज वृंदावन के कृपापात्र पीठाधीश्वर स्वामी सत्यानंद महाराज के सान्निध्य में संगीतमय हनुमान कथा शुरु की गई। कथा व्यास श्रीहरि मंदिर अमरधाम, फर्रुखनगर (गुरुग्राम) के अधिष्ठाता डॉ. स्वामी उमानंद (मानसमणि) ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा कि श्रीसुंदरकांड पाठ का संबंध मन की सफाई से है। इंस्टाग्राम पर ढेरों रील्स रोज आती है जिसमें तन का प्रदर्शन होता है। शरीर को स्वस्थ रखना कोई बुरी बात नहीं पर इस बाहरी सुंदरता में यदि अंदर कालिख भरी है तो फिर यह प्रदर्शन दो कौड़ी का नहीं। किसी शायर ने कहा है-मत गुरुर कर बाहर की सफाई पर ...चांदी का वर्क लगा है गोबर की मिठाई पर..., हनुमानजी का सेवा भाव और सुमिरन इतना है कि शायद कोई ऐसा मंदिर हो, जहां हनुमानजी की स्थापना ना हो। लोग हनुमानजी को पूजते हैं। हनुमान के बल पर विश्वास रखते हैं और हनुमान भी हर समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। अगर शरीर को ही देखना है तो हनुमानजी जैसा शरीर किसी का हो नहीं सकता। जिसकी पूंछ पर 64000 टन सोने की घंटी बंधी हो, उसका शारीरिक बल क्या होगा, यह अनुमान लगाना मुश्किल है। आज के युवा वर्ग को हनुमानजी प्रेरणा दे रहे हैं कि तन बल के साथ-साथ बुद्धि का विवेक और ज्ञान भी बहुत जरूरी है। जिसके पास कुछ है, उसको प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं है। उसके गुण स्वयं ही बाहर आ जाएंगे और जैसे फूल की महक अपने आप बिखर जाती है। ऐसे गुणों की महक भी अपने आप लोगों को पता चल जाती है। परिवर्तन और निर्माण बीज के अंदर ही होता है, ऐसे ही शरीर के बीज रूपी मन में कुछ हलचल हुई कि नहीं, इसके कुछ अनुभव प्रयोग सुन्दरकाण्ड में वर्णित है। हिसार के भजन सम्राट डॉ. मोहन तनेजा ने भजनों की वर्षा की।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

   

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