शाजापुर : ट्रेन से गिरकर जंगल में घायल पड़ा था युवक, रेल्वे आरक्षक ने खोजकर बचाई जान

शाजापुर, 25 नवंबर (हि.स.)। बीते दिनों शाजापुर-सारंगपुर रेल्वे ट्रेक पर आधी रात को चलती ट्रेन से गिरकर गंभीर रूप से घायल युवक को खासी मशक्कत के बाद रेल्वे ट्रेक पर खोज निकालने और उसे तत्काल उचित उपचार दिलवाकर जान बचाने वाले शाजापुर आरपीएफ में पदस्थ रेल्वे आरक्षक मुकेश कुमार मीणा के प्रयासों की सभी के द्वारा मुक्त कंठ से सराहना की जा रही है।

आमतौर पर किसी भी महकमे के कर्मचारी द्वारा अपनी ड्यूटी निभाना उसका फर्ज होता है लेकिन ड्यूटी के दौरान अपने कर्तव्य को सर्वोपरि मानकर सेवा देना और उस सेवा व समर्पण से किसी दूसरे को जीवनदान मिल जाना निश्चित ही सराहनीय और अनुकरणीय मिसाल बन जाता है। एसी ही एक अनुकरणीय मिसाल शाजापुर रेल्वे में पदस्थ आरपीएफ के आरक्षक मुकेश कुमार मीणा ने बीते दिनों प्रस्तुत की है, जिन्होंने रविवार की रात को इंदौर-अमृतसर ट्रेन से गिरकर गंभीर रूप से घायल देवास निवासी 28 वर्षीय हर्षल धूमाल नामक ओबीएचएस स्टाफ सदस्य की मदद करके ना केवल उसे समय पर उचित उपचार दिलवाया बल्कि उसकी जान बचाने का सराहनीय काम भी ड्यूटी के दौरान किया। दुर्घटना की खबर मिलने के बाद आधी रात को ही घायल की खोज में निकले आरक्षक मीणा द्वारा बरती गई सक्रियता से युवक को समय पर मिली जीवनदायिनी राहत के लिए परिजनों ने भी देवदूत बताकर उनका आभार जताया।

देवदूत बनकर बचाई मेरे बेटे की जान...

घटना के बाद सिर में आई गंभीर चौंट के चलते इंदौर स्थित अस्पताल में हर्षल का उपचार जारी है। इस संबंध में जब घायल युवक की मां देवास निवासी श्रीमती मालिनी धूमाल से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि यदि उस दिन दुर्घटना के बाद आरक्षक श्री मीणा द्वारा उनके घायल बेटे को खोजने में तत्परता के साथ इमानदारी से मेहनत नहीं की जाती तो आज उनका बेटा उनके पास नहीं होता। रात के घने अंधेरे में घायल बेटे को अकेले ढुंढने में खुद कई तरह की परेशानियों का सामना करने के बावजूद श्री मीणा ने हिम्मत नहीं हारी और आखिरकार उसे खोज कर अस्पताल में भर्ती करवाया। जिससे समय पर उपचार मिलने से उसकी जान बच सकी। वहीं ट्रेन में सफर कर रहे उसके अन्य साथियों ने इस संबंध में कोई खबर तक नहीं दी साथ ही जिस कंपनी के माध्यम से वह ट्रेन में सफाईकर्मी के रूप में कार्य करता है वहां से भी दुर्घटना की कोई जानकारी नहीं मिली। उन लोगों की यह लापरवाही बेटे की जान भी ले सकती थी, लेकिन उस वक्त देवदूत बनकर खोज में लगे आरक्षक मीणा ने उसे दूसरा जीवन देने का काम किया। जिनके उपकार का बदला कभी किसी रूप में नहीं चुकाया जा सकता। श्रीमती धूमाल ने बताया कि बेटे के सुरक्षित लौटने पर हमारे द्वारा मीणा को कुछ धनराशि भी उनके द्वारा किए गए परोपकार के लिए भेंट स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया किंतु उन्होंने स्पष्ट इंकार करते हुए इस सेवा को अपना फर्ज बताया। श्री मीणा के इस व्यवहार को देखते हुए हमारी कोशिश होगी कि हर्षल के स्वस्थ होने पर उनके वरिष्ठ अधिकारियों से मिलकर उनके द्वारा किए गए प्रयासों को पुरस्कृत किए जाने संबंधी पहल की जाए। ताकि समर्पित सेवा भावना को उचित सम्मान मिल सके।

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हिन्दुस्थान समाचार / मंगल नाहर

   

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