मराठवाड़ा क्षेत्र में सीआरआईडीए मिशन कार्यालय की स्थापना

नई दिल्ली, 7 फरवरी (हि.स.)। आईसीएआर-सीआरआईडीए महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में तीन अलग-अलग तरीकों से व्यापक रूप से और सीधे तौर पर काम कर रहा है। इसका समग्र उद्देश्य शुष्क भूमि कृषि पर आवश्यक और रणनीतिक अनुसंधान करना है। यह जानकारी आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने दी।

इस जानकारी के अनुसार मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीडीए) परभणी केंद्र क्षेत्र-विशिष्ट फसलों और फसल प्रणालियों के मूल्यांकन और स्थापना के लिए काम कर रहा है। इनमें वर्षा जल प्रबंधन, पोषक तत्व प्रबंधन, ऊर्जा प्रबंधन, वैकल्पिक भूमि उपयोग प्रबंधन और वर्षा आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली (आरआईएफएस) शामिल है।

मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीएएम) परभणी केंद्र संसाधन लक्षण-निर्धारण के क्षेत्र में काम कर रहा है। मराठवाड़ा क्षेत्र में प्रमुख फसलों के फसल, मौसम, कीट, कीट संबंध स्थापित कर रहा है तथा क्षेत्र आधारित कृषि-मौसम परामर्श का प्रसार कर रहा है।

मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित केवीके के माध्यम से निक्रा-टीडीसी के जालना, लातूर और उस्मानाबाद केंद्र चार मॉड्यूल के तहत क्षेत्र में जलवायु लचीला प्रौद्योगिकियों को बढ़ा रहे हैं यानी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, फसलें और फसल प्रणाली, पशुधन, ग्राम स्तरीय संस्थान और क्षमता निर्माण आदि। क्षेत्र में जिन प्रमुख प्रौद्योगिकियों को बढ़ाया जा रहा है, वे हैं अल्पावधि और सूखे से बचने वाली सोयाबीन किस्म (एमएयूएस-158), अक्सर सूखा प्रवण क्षेत्रों के लिए अल्प अवधि वाली अरहर की किस्म (बीडीएन-711), घटती नमी की स्थिति के लिए कुसुम की तनाव सहिष्णु किस्म (पीबीएनएस-12), उत्पादन को स्थिर करने तथा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जोखिम को कम करने के लिए अंतर-फसल प्रणाली, ताकि संघर्षरत किसानों की सहायता की जा सके।

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में मिशन कार्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। आईसीएआर-आईजीएफआरआई ने संकटग्रस्त किसानों की सहायता पर केंद्रित मराठवाड़ा क्षेत्र सहित महाराष्ट्र के लिए चारा संसाधन विकास योजना विकसित की है। इस योजना ने महाराष्ट्र में सूखे चारे की 31.3% कमी तथा हरे चारे की 59.4% कमी के अंतर को कम करने में मदद की। चारे की उपलब्धता को और बढ़ाने के लिए भारतीय चरागाह तथा चरागाह संरक्षण, पुनरुद्धार तथा भरण-पोषण के लिए एक नीति विकसित की गई, जिससे महाराष्ट्र के चरागाहों को पुनर्जीवित करने में मदद मिली।

इसके अलावा आईसीएआर से समर्थित अखिल भारतीय समन्वित चारा फसल और उपयोग अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी-एफसीएंडयू) के दो केंद्र पहले से ही पुणे और राहुरी में काम कर रहे हैं, ताकि किसानों के खेतों पर रबी और खरीफ सीजन में चारा फसलों पर मराठवाड़ा क्षेत्र सहित पूरे महाराष्ट्र के लिए प्रौद्योगिकियों का निर्माण और प्रसार किया जा सके। पिछले पांच वर्षों के दौरान महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में खेती के लिए एआईसीआरपी-एफसीएंडयू और आईसीएआर-आईजीएफआरआई द्वारा विभिन्न चारा फसलों की 50 से अधिक किस्मों को विकसित और अनुशंसित किया गया है।

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हिन्दुस्थान समाचार / दधिबल यादव

   

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