स्टार प्रचारको के धुंआधार चुनावी रैली, सभाओं में मतदाताओं की नहीं हो रही भागदारी,छठ पर्व बाद चुनावी रंग चढ़ने की उम्मीद
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- Oct 26, 2025


गोपालगंज, 26 अक्टूबर (हि.स.)।
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, जिले के छह विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी तो दिख रही है, लेकिन मतदाताओं की चुप्पी ने प्रत्याशियों की चिंता बढ़ा दी है। गांव-गांव में जनसंपर्क अभियान तेज हो चला है। हर दल के उम्मीदवार अपने समर्थकों के साथ घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं, लेकिन जनता फिलहाल खामोश है।
एनडीए, यूपीए,बीएसपी और जनसुराज के उम्मीदवारों के बीच इस बार टक्कर मानी जा रही है। वहीं निर्दल प्रत्याशी भी अपने स्तर पर सक्रिय हैं और प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। गांवों में छोटी-छोटी बैठकों, नुक्कड़ सभाओं और पदयात्राओं के जरिए मतदाताओं को रिझाने की कोशिशें जारी हैं। बावजूद इसके, मतदाता अब तक अपने मन की बात जाहिर नहीं कर रहे हैं। जिले के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार का चुनाव पूरी तरह से मौन मतदाता का चुनाव होता जा रहा है।
उम्मीदवार और कार्यकर्ता घर-घर घूम रहे हैं, लेकिन लोग खुलकर किसी का समर्थन नहीं कर रहे। जब उनसे वोट के रुझान की बात पूछी जाती है, तो वे मुस्कुराकर चुप हो जाते हैं।गोपालगंज सदर विधानसभा से इस बार भाजपा ने नए चेहरे सुबाष सिंह को मैदान में उतारा है। वहीं यूपीए ने कांग्रेस के युवा नेता ओमप्रकाश गर्ग पर भरोसा जताया है। पूर्व सांसद साधु यादव की पत्नी इंदिरा देवी बसपा के टिकट पर हाथी की सवारी कर रही हैं। बरौली विधानसभा में भी समीकरण दिलचस्प हैं।
एनडीए से जदयू के मंजीत कुमार सिंह चुनाव मैदान में हैं, जबकि यूपीए की ओर से राजद ने दिलीप कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया है। टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व विधायक रेयाजुल हक राजू ने बसपा का दामन थामा है, वहीं जनसुराज पार्टी ने शिक्षाविद फैज अहमद को प्रत्याशी बनाया है। भोरे विधानसभा में जदयू ने अपने पुराने प्रत्याशी सुनील कुमार पर दोबारा भरोसा जताया है। दूसरी ओर, भाकपा-माले ने जेएनयू के पूर्व छात्र नेता धनंजय पासवान को मैदान में उतारा है, जो जेल में बंद नेता जितेन्द्र पासवान की जगह चुनाव लड़ रहे हैं।
कुचायकोट विधानसभा में इस बार भी मुकाबला दिलचस्प है। एनडीए से जदयू ने लगातार पांच बार विधायक रहे अमरेन्द्र उर्फ पप्पू पांडेय को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने हरिनारायण सिंह पर दांव लगाया है।राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिले में इस बार का चुनाव 6 विधानसभा में चार पुराने समीकरणों को दोहराने वाला और दो नए चेहरे को मौका देने वाला हो सकता है।
एनडीए और यूपीए दोनों ने कई सीटों पर नए प्रत्याशियों को टिकट देकर प्रतिस्पर्धा को और रोमांचक बना दिया है। हालांकि अभी तक गांवों में चुनावी माहौल पूरी तरह नहीं बन पाया है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि लोग फिलहाल छठ महापर्व की तैयारियों में व्यस्त हैं। ग्रामीण अंचलों में घरों की सफाई, घाट सजाने और पूजा की तैयारी में लोग जुटे हैं। राजनीतिक चर्चाएं तो हैं, लेकिन खुले समर्थन की गूंज नहीं सुनाई दे रही। स्थानीय लोगों का मानना है कि छठ पर्व के बाद चुनावी माहौल पूरी तरह रंग पकड़ेगा। तब जनसभाओं, रोड शो और प्रचार की रफ्तार बढ़ेगी। फिलहाल स्थिति यह है कि नेता बोल रहे हैं, पर मतदाता मौन हैं। और यह मौन इस बार के चुनाव परिणामों का सबसे बड़ा निर्धारक साबित हो सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / Akhilanand Mishra



