सौ बरस गुजर जाने के बाद भी साहिबा ने रोजा रखना नहीं छोड़ा

स्वजनों के साथ साहिबा खान।

धमतरी, 22 मार्च (हि.स.)। कुरुद सौ बरस गुजर गए साहिबा को! उम्र की इस दहलीज में पहुंचने के बाद भी उसने रोजा रखना नहीं छोड़ा, न ही कभी तहज्जूद की नमाज ( रात 12 के बाद पढ़ी जाने वाली नमाज) छोड़ी। बीस मार्च 2025 को वह पूरे सौ साल की हो गई। साहिबा की लंबी उम्र का राज उसकी दिनचर्या है, जिसे आज भी वह फालो करती हैं।

धमतरी के समीपवर्ती जिला बालोद निवासी मोहम्मद सरदार खान के यहां जन्मी साहिबा खान के परिवार में शुरू से ही मजहबी माहौल है। कम उम्र से उन्होंने हिंदी, अरबी और ऊर्दू की तालीम हासिल करना शुरू किया और सात साल की उम्र में माहे रमजान का पहला रोजा रखा। वह दिन था और आज का दिन है। साहिबा खान ने कभी भी रोजा नही छोड़ा। आज भी उम्र के इस पड़ाव में पहुंचने के बाद भी रोजा रखती है। जो लोगों के लिए एक मिसाल है। बालोद से विदा होकर शादी के बाद साहिबा खान धमतरी जिले के ग्राम बोडरा में आ गई और अपने परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाती रही। वर्तमान में वह कुरुद नगर के शिवाजी वार्ड क्रमांक छह में बेटे महबूब खान के साथ रह रही है।

साहिबा खान की लंबी उम्र के पीछे छिपा राज उनकी दिनयर्चा है। पांचों वक्त की नमाज पाबंदी के साथ पढ़ने के अलावा वह आधी रात्रि पढ़ी जाने वाली तहज्जुद की नमाज भी कभी नहीं छोड़ती। दिन भर पाक साफ ( साफ-सुथरा) रहकर तस्बी (मोती के दाने) हाथ में लिए दरूद शरीफ पढ़ती रहती है। साहिबा खान बिना चश्मे के कुरआन शरीफ की तिलावत करती हैं। उनके दांत आज भी मजबूत हैं। उम्र के सौ साल बीत जाने के बाद वह कमजोर हो गई हैं परंतु रोजा रखना अभी भी नहीं छोड़ा है।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा

   

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