पूर्व डीजीपी संजय कुंडू समेत नौ पुलिस अफसरों के खिलाफ एफआईआर रद्द

शिमला, 12 जनवरी (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व डीजीपी संजय कुंडू और आईपीएस अधिकारी अंजुम आरा समेत नौ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में किसी भी प्रकार का आपराधिक मामला बनने से इनकार करते हुए एफआईआर को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया।

न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि निलंबित कांस्टेबल धर्मसुख नेगी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पूरी तरह से विभागीय प्रक्रिया का हिस्सा थी। अदालत ने माना कि एफआईआर के माध्यम से उत्पीड़न के जो आरोप लगाए गए थे औऱ वे तथ्यहीन और निराधार हैं।

ये है मामला

यह मामला जनजातीय जिला किन्नौर के निवासी बर्खास्त कांस्टेबल धर्मसुख नेगी से जुड़ा है। धर्मसुख की पत्नी मोना नेगी ने पुलिस अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करवाई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके पति को 9 जुलाई 2020 को मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इतना ही नहीं उनसे सरकारी आवास खाली कराने में देरी होने पर 1,43,423 रुपये की वसूली का आदेश भी जारी किया गया।

मोना नेगी ने शिकायत में दावा किया कि उनके पति को प्रताड़ित किया गया और उनके साथ अन्याय किया गया। उन्होंने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, सचिव (गृह) और शिमला एसपी को भी इस मामले की जानकारी दी थी। इसके बाद हिमाचल प्रदेश के पूर्व डीजीपी समेत नौ अधिकारियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(बी) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

ये अधिकारी थे नामजद

इस एफआईआर में पूर्व डीजीपी संजय कुंडू, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हिमांशु मिश्रा, अरविंद शारदा, एसपी शालिनी अग्निहोत्री, अंजुम आरा खान, भगत सिंह ठाकुर, पंकज शर्मा, मीनाक्षी और डीएसपी बलदेव दत्त का नाम शामिल था। मोना नेगी ने आरोप लगाया था कि इन अधिकारियों ने उनके पति को गलत तरीके से नौकरी से बर्खास्त कर अन्याय किया।

हाईकोर्ट ने क्या कहा

अंजुम आरा, पंकज शर्मा और बलदेव दत्त ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर एफआईआर को चुनौती दी थी। अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि दर्ज एफआईआर में लगाए गए आरोप तथ्यात्मक रूप से कमजोर हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विभागीय कार्रवाई का हिस्सा बनी घटनाओं को आपराधिक मामले में बदलना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सभी नौ अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने कहा कि बर्खास्त कांस्टेबल के खिलाफ की गई कार्रवाई विभागीय नियमों के तहत थी और इसमें कोई व्यक्तिगत विद्वेष नहीं था।

बर्खास्तगी पर सवाल

शिकायतकर्ता मोना नेगी का कहना था कि उनके पति धर्मसुख नेगी के खिलाफ कार्रवाई अन्यायपूर्ण थी। उनके पति के पास सेवा के आठ साल बाकी थे। लेकिन उन पर लगे आरोप मनगढ़ंत थे। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके पति को जातीय आधार पर निशाना बनाया गया और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा

   

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