बीएचयू में जुटेंगे दिग्गज ज्योतिष,विवाह मेलापक की सामयिक व्यवस्था पर होगी चर्चा
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- Mar 18, 2025

—पंचांगों की गणना के लिए तैयार करेंगे गणित,पूरे देश में एक ही तिथि पर व्रत त्योहार को लेकर होगा विमर्श
वाराणसी,18 मार्च (हि.स.)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में 20 से 22 मार्च के बीच देश—विदेश के दिग्गज ज्योतिष विशेषज्ञों का जमावड़ा होगा। चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में पंचांग की शास्त्रीय व्यवस्था और विवाह के लिए मेलापक की सामयिक व्यवस्था (दोष परिहार) पर खासतौर पर चर्चा होगी। सम्मेलन में विवाह में कुंडली का मिलान और ग्रह दोष समाप्त करने के लिए मंथन होगा। जिससे विवाह संबंध लंबे समय तक चलें और उसमें कोई बाधा न आए। मंगलवार को विश्वविद्यालय के मीडिया कांफ्रेंस हाल में आयोजित पत्रकार वार्ता में यह जानकारी ज्योतिष विभाग,संस्कृत विद्याधर्म विज्ञान संकाय बीएचयू के प्रो. विनय पांडेय,प्रो.शत्रुघ्न त्रिपाठी ने दी।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में देश- विदेश के विशेषज्ञ शामिल होंगे। इसमें ज्योतिषाचार्य लेखराज भी आयेंगे जो हाथ की रेखा देखकर कुंडली तैयार करते हैं। प्रो.त्रिपाठी ने बताया कि सम्मेलन में विश्वविद्यालय का ज्योतिष विभाग ऐसा गणित तैयार करेगा जो पूरे देश के ज्योतिष पंचांग में काम आएगा। इससे पूरे देश में एक ही तिथि पर व्रत त्योहार और तिथि निर्धारित हो जाएगी। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की व्यवस्था में शास्त्रोक्त विधि से निर्मित पंचांगों की महती भूमिका होती है। क्योंकि सनातन परम्परा से संबंधित सभी स्राेत एवं स्मार्त कार्य कालाधीन होते हैं। तथा उनकी व्यवस्था पंचांगों से ही प्राप्त होती है। इसलिए पंचांग निर्माण विषयों में महत्वपूर्ण विषय के रूप में सिद्धांत के सभी ग्रंथों में प्रतिपादित है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में विभिन्न गणितीय पद्धतियों के कारण इसमें कई भिन्नताएँ देखने को मिल रही हैं। विशेष रूप से, सबीज और निर्बीज गणना पद्धतियों के अंतर के कारण पर्वो की तिथियों में असमानता उत्पन्न हो रही है, जिससे धार्मिक आयोजनों और व्रत-पर्व की तिथियों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। इस सम्मेलन में विशेषज्ञ मंथन करेंगे कि पंचांग की कौन-सी शास्त्रीय पद्धति को मान्यता दी जानी चाहिए , जो विभिन्न गणितीय मतभेदों को सुलझा सके।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी