जूनियर डॉक्टरों का अनशन समाप्त करवाने में चार चिकित्सकों की प्रमुख भूमिका

कोलकाता, 22 अक्टूबर (हि.स.) ।

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों का अनशन सोमवार शाम को खत्म हो गया। हालांकि, 10 प्रमुख मांगों में से कई अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। इसके बावजूद, आखिरकार डॉक्टरों ने अनशन खत्म करने का फैसला क्यों लिया? इस पूरे घटनाक्रम के पीछे चार डॉक्टरों के नाम सामने आ रहे हैं, जिन्होंने यह फैसला लेने में निर्णायक भूमिका निभाई है।

एक जूनियर डॉक्टर के अनुसार, कोलकाता के तीन मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल और एसएसकेएम अस्पताल के एक विशेषज्ञ डॉक्टर ने अनशन समाप्त कराने में प्रमुख भूमिका निभाई। इसमें शामिल डॉक्टर हैं - नीलरतन सरकार मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर पीतबरण चक्रवर्ती, आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर मानस बंद्योपाध्याय, कोलकाता मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर इंद्रनील विश्वास और एसएसकेएम अस्पताल के कंसल्टेंट डॉक्टर सौरव दत्ता। इनके अलावा, उत्तरबंग मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉक्टर उत्पल बंद्योपाध्याय ने भी अहम भूमिका निभाई।

डॉक्टरों के इस समूह ने शनिवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रदर्शनकारियों के बीच फोन पर हुई बातचीत के बाद जूनियर डॉक्टरों को अनशन खत्म करने के लिए राजी किया। उन्होंने डॉक्टरों को समझाया कि अनशन के बजाय अन्य तरीकों से भी उनकी मांगें पूरी हो सकती हैं और अनशन न खत्म करने की स्थिति में आंदोलन बेअसर हो सकता है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस अनशन से मरीजों को होने वाली परेशानियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सिर्फ समझाने-बुझाने से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव ने भी डॉक्टरों के अनशन को समाप्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तृणमूल कांग्रेस ने बार-बार यह स्पष्ट कर दिया कि स्वास्थ्य सेवाओं में किसी भी प्रकार की बाधा के लिए जिम्मेदार प्रदर्शनकारी ही होंगे। इस बात का असर जनमानस पर भी दिखने लगा, जिसके चलते जूनियर डॉक्टरों को अनशन समाप्त करने पर मजबूर होना पड़ा।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

   

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