- बीटीसी के सीईएम ने आजीविका वृद्धि के लिए सहकारी मॉडल का किया समर्थन
उदालगुरी (असम), 28 नवम्बर (हि.स.)। उदालगुरी जिले के डिमाकुची में किए गए एक व्यवहार्यता अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि इस क्षेत्र में स्थायी बकरी पालन के लिए आशाजनक संभावनाएं हैं। बीटीसी के सीएचडी कोऑपरेशन, जयंत खेरकतारी के मार्गदर्शन में और बीटीआर डेवलपमेंट फेलोशिप प्रोग्राम के फेलो की सहायता से यह अध्ययन पारंपरिक घरेलू प्रथाओं से बकरी पालन को एक संरचित, सहकारी-आधारित उद्यम में बदलने का लक्ष्य रखता है।
पायलट प्रोजेक्ट का फोकस शेखर एसएस लिमिटेड पर था। ताकि बकरी पालन को एक स्थायी आजीविका विकल्प के रूप में जांचा जा सके। यह लगभग 3,700 शेयरधारकों की एक सहकारी समिति है। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि इस क्षेत्र की जलवायु और प्राकृतिक संसाधन ब्लैक बंगाल और बीटल जैसी नस्लों के लिए आदर्श हैं। ब्लैक बंगाल की स्थानीय बाजारों में अत्यधिक मांग में है। जबकि, बीटल नस्ल निर्यात के लिए उत्कृष्ट संभावना दिखाती है। हरे-भरे चारे की उपलब्धता और एक अच्छी तरह सुसज्जित पशु चिकित्सालय डिमाकुची में सफल बकरी पालन की संभावनाओं को और मजबूत कर सकता है।
अध्ययन से पता चला है कि यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो यह पहल बकरी पालन को एक संपन्न और आर्थिक रूप से व्यवहार्य क्षेत्र में बदल सकती है, जिससे इस क्षेत्र के कई घरों को सीधे लाभ होगा। अध्ययन में प्रस्तावित सहकारी मॉडल एक स्केलेबल ढांचा बनाने की आवश्यकता दिखी, जो समावेशिता और दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित करता है। यह अध्ययन डिमाकुची में बकरी पालन को एक प्रमुख आजीविका स्रोत के रूप में विकसित करने का खाका पेश करता है, जिससे ग्रामीण विकास और बीटीआर में आर्थिक आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त होगा।
यह पहल बीटीसी के मुख्य कार्यकारी पार्षद प्रमोद बोडो की इस दृष्टि के साथ मेल खाती है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाए और बीटीआर में सतत विकास के लिए सहकारी आंदोलन को बढ़ावा दिया जाए। ऐसे प्रोजेक्टों के व्यापक उद्देश्य पर बात करते हुए सीईएम बोडो ने इस बात पर जोर दिया है कि ऐसी आजीविका के अवसर पैदा किए जाएं जो ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाए और क्षेत्रीय आर्थिक प्रगति में योगदान दें।
हिन्दुस्थान समाचार / किशोर मिश्रा