पटना, 18 अक्टूबर (हि.स.)। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा में आयोजित ‘चन्द्रगुप्त साहित्य महोत्सव’ का उद्घाटन किया। तीन दिवसीय चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के अवसर पर उनका मिथिला के परंपरा के अनुसार स्वागत किया गया।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज के महोत्सव में भविष्य में हमारी विचारधारा, चिंतन एवं विमर्श की दिशा के संबंध में विचार किया जाना चाहिए। अच्छे नाटकों, कविताओं व कथा-कथन तथा अच्छी फिल्मों की पटकथाओं आदि को साहित्य का अंग बनना चाहिए। साहित्य सम्मेलनों में भारत के विभिन्न क्षेत्रों एवं भाषाओं के साहित्य पर भी चिंतन व चर्चा होनी चाहिए। इससे भारतीय भाषाओं का अभिरूचि सम्पन्न अभिजात स्वरूप सामने आयेगा।
राज्यपाल ने कहा कि विभिन्न राज्यों में साहित्य महोत्सव के नाम पर भारत विरोधी विचारधारा जुटती है। हिमाचल में भारत विरोधी विचारधारा, मानव विरोधी विचारों के रूप में परोसा जाता है। आर्लेकर ने कहा कि देशभर में बहुत सारे ऐसे सम्मेलन और उत्सव होते हैं, जिसमें साहित्यकारों, विचारकों, चिंतक आते हैं और अपने विचार को रखते हैं लेकिन देश मे जयपुर फेस्टिवल का बहुत चर्चा होती है। आप सभी जानते हैं कि जयपुर फेस्टिवल का क्या स्तर है। जयपुर फेस्टिवल बिल्कुल अलग विचारधाराओं के लोगों के लिए प्रसिद्ध है। अनेक बार वहां पर भारत विरोधी विचारधाराएं आती हैं।
उन्होंने कहा कि इस बार चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव का आयोजन दरभंगा के उस राज परिसर में हो रहा है, जिसका शिक्षा के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह का आयोजन सिर्फ हिंदी भाषा में ही नहीं, बल्कि इस तरह के आयोजन में अन्य भाषा को भी सम्मिलित करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर मंच पर राज्यपाल के अलावा अतिथि के रूप में दरभंगा राज परिवार के सदस्य कपिलेश्वर सिंह, आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख नरेन्द्र कुमार ठाकुर, मोहन सिंह, राज किशोर, राजन प्रसाद गुप्ता तथा साहित्य अकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष कुदोम शर्मा उपस्थित थीं।
हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद चौधरी