अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों ने सुनाई अपने संघर्ष और सफलता की प्रेरक कहानियां!

नई दिल्ली, 08 मार्च (हि.स.)। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे, ड्रैग-फ्लिक विशेषज्ञ दीपिका, और मिडफील्डर लालरेमसियामी ने खेलों में महिलाओं की शक्ति, अपने संघर्षों और महिला सशक्तिकरण के महत्व पर विचार साझा किए। उनकी कहानियां न केवल खेल जगत में उनके दृढ़ संकल्प और साहस को दर्शाती हैं, बल्कि देश में महिलाओं की खेलों में बढ़ती भागीदारी को भी रेखांकित करती हैं।

सलीमा टेटे: छोटे से गांव से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक का सफर

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे ने झारखंड के एक छोटे से गांव से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक का सफर तय किया है। महिला सशक्तिकरण पर बात करते हुए उन्होंने कहा, साधारण पृष्ठभूमि से होने के कारण मैं जानती हूं कि सामाजिक बाधाओं को पार करना क्या होता है। मैंने लकड़ी की हॉकी स्टिक से खेलना शुरू किया था, लेकिन इससे मेरे बड़े सपने देखने की हिम्मत कम नहीं हुई। हॉकी ने मुझे आत्मविश्वास दिया और चुनौतियों से जूझने की शक्ति दी। आज, मैं एक ऐसी टीम का नेतृत्व कर रही हूं जो अनगिनत युवा लड़कियों को खेल में करियर बनाने के लिए प्रेरित कर रही है।

उन्होंने आगे कहा, महिला सशक्तिकरण का मतलब अवसर पैदा करना है, और हम खिलाड़ी इस बात का जीवंत उदाहरण हैं कि दृढ़ संकल्प के साथ महिलाएं किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकती हैं।

दीपिका: बाधाओं को पार करने और अपनी शक्ति पर विश्वास करने की प्रेरणा

हरियाणा के हिसार की रहने वाली दीपिका ने भी अपने संघर्षों और खेल में आगे बढ़ने की कहानी साझा की। उन्होंने कहा, मैंने 2012 में कुश्ती अभ्यास के रास्ते में पहली बार हॉकी स्टिक उठाई थी। तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं भारतीय टीम का हिस्सा बनूंगी। मेरे परिवार, खासकर मेरे पिता ने, हर स्थिति में मेरा साथ दिया, भले ही लोगों ने मेरे हॉकी खेलने के फैसले पर सवाल उठाए।

महिला सशक्तिकरण पर बोलते हुए दीपिका ने कहा, यह जरूरी है कि महिलाएं अपनी शक्ति को पहचानें। हमें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमारे प्रयास और दृष्टिकोण हमारे सफर को परिभाषित करते हैं। हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए, कड़ी मेहनत करनी चाहिए और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना चाहिए। किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए समय लगता है, लेकिन समर्पण और मेहनत से हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

लालरेमसियामी: मिजोरम से भारत के लिए खेलने तक का सफर

मिजोरम की पहली महिला ओलंपियन लालरेमसियामी ने भी अपनी संघर्षपूर्ण यात्रा साझा की। उन्होंने कहा, मिजोरम से निकलकर ओलंपिक्स में खेलना सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, बल्कि मेरे पूरे समुदाय के लिए गर्व की बात थी। भाषा की समस्या और नए माहौल में ढलना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण था, लेकिन हॉकी हमेशा मेरे लिए एक सेतु की तरह रही, जिसने मुझे आगे बढ़ने में मदद की।

2019 के एफआईएच सीरीज फाइनल्स (हिरोशिमा, जापान) के दौरान लालरेमसियामी को अपने पिता के निधन की खबर मिली, लेकिन उन्होंने टीम के साथ रहने और मैच खेलने का फैसला किया। भारत ने यह टूर्नामेंट जीता और उनके इस निर्णय ने उनकी प्रतिबद्धता और समर्पण को दर्शाया।

इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, यह मेरे जीवन का सबसे कठिन निर्णय था, लेकिन मुझे पता था कि मेरे पिता चाहते थे कि मैं भारत के लिए खेलूं। हॉकी ने मुझे धैर्य और निस्वार्थता सिखाई है, और मैं चाहती हूं कि मेरी यात्रा मिजोरम और पूरे भारत की लड़कियों को प्रेरित करे कि वे किसी भी परिस्थिति में अपने सपनों को न छोड़ें।

महिला सशक्तिकरण और खेलों में बढ़ती भागीदारी

भारतीय महिला हॉकी टीम ने पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई उपलब्धियां हासिल की हैं। सलीमा टेटे, दीपिका, और लालरेमसियामी जैसी खिलाड़ी इस बात का प्रमाण हैं कि सही अवसर और समर्थन मिलने पर महिलाएं किसी भी क्षेत्र में असाधारण सफलता प्राप्त कर सकती हैं। उनकी कहानियां सिर्फ खेल तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो अपने सपनों को साकार करने की राह पर हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे

   

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