चीन में हिन्दी अध्यापन में अप्रत्यशित वृद्धि हो रही : डॉ विवेकमणि त्रिपाठी

-विश्व हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर ’सर्जनपीठ’ का अन्तरराष्ट्रीय आयोजन

प्रयागराज, 09 जनवरी (हि.स.)। ’सर्जनपीठ’, प्रयागराज के तत्वावधान में गुरूवार को ’विश्व हिन्दी दिवस’ की पूर्व संध्या पर सारस्वत सदन, अलोपीबाग में ’हिन्दी की वैश्विक स्थिति’ विषयक एक आन्तर्जालिक अन्तरराष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि चीन के क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय हिन्दी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ० विवेकमणि त्रिपाठी ने बताया कि चीन मे हिन्दी का इतिहास आठ दशक का है, परन्तु पिछले दो दशक में चीन में हिन्दी अध्यापन में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है।

डॉ त्रिपाठी ने आगे बताया कि वर्तमान मे चीन के अठारह विश्वविद्यालयों मे हिन्दी भाषा स्नातक स्तर पर तथा तीन विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर एवं पीएचडी स्तर पर पढ़ाई जा रही है। अभी चीन में प्रतिवर्ष पाँच सौ से अधिक शोधपत्र हिन्दी में लिखे जा रहे हैं। वहां हिन्दी अनुवाद कार्य भी व्यापक स्तर पर किये जा रहे हैं। चीनी बाज़ार में भी हिन्दी की मांग बनी हुई है, जिसके कारण चीन में हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या में अति वृद्धि हो रही है।

समारोह में एस०जे०एस०यू०, संयुक्त राज्य अमेरिका की विज़टिंग स्कॉलर डॉ० नीलम जैन अध्यक्ष रहीं। उन्होंने बताया कि आज हिन्दी पूरी दुनिया में सिर्फ़ बोलचाल और सम्पर्क की भाषा नहीं है, बल्कि वह इण्टरनेट, ह्वाट्सऐप्प तथा ई मेल की बनती जा रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में हिन्दी भाषा की उन्नति और विकास पर संसद मे अलग से बजट तैयार किया जाता है। विदेश में हिन्दी जानने वाले भारतीय लोग बच्चों को साप्ताहिक छुट्टी के दिन निःशुल्क हिन्दी-कक्षाएं आयोजित कर, हिन्दी सिखाकर उन्हें शिक्षित और जागरूक करते हैं।

यशवन्तराव चह्वाण वारणा महाविद्यालय, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) प्रभारी प्रधानाचार्य एवं प्रो० प्रकाश शंकरराव चिकुर्डेकर हिन्दी विभागाध्यक्ष ने कहा अपने देश के प्रबुद्धजन विदेश मे लेखक, पत्रकार, अध्यापक, सांस्कृतिक समन्वयक आदि के रूप मे हिन्दी सेवा करते आ रहे हैं। साथ ही अप्रवासी भारतीय साहित्यकार हिन्दी का प्रचार-प्रसार विविध माध्यमों मे कर रहे हैं।

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आयोजक-संचालक एवं भाषाविज्ञानी, प्रयागराज ने कहा हम भारतीय भूल जाते हैं कि जब भी कोई विस्तार होता है तब वह अपने पूरे अनुशासन के साथ नहीं हो पाता। यही कारण है कि हिन्दी के वैश्विक विस्तार के समय उसके शुचिता-पक्ष पर जितना ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए था, उतना नहीं किया गया। जिसका परिणाम और प्रभाव भी हमारे सामने है। आज विश्व में हिन्दी के जितने भी समाचार पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित की जा रही हैं, उनमें सामान्य स्तर की अशुद्धियां व्याप्त रहती हैं। हिन्दी सेवियों को इस ओर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करना होगा।

आगरा में अंग्रेज़ी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ० अमरेश बाबू यादव का मानना है कि वैश्वीकरण एवं बाज़ारवाद के आधुनिक दौर मे हिन्दी का महत्त्व दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। आज भारत के बाहर नेपाल, भूटान, सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैण्ड, हांगकांग, फीजी, मॉरीशस, ट्रिनीडाड, गयाना, सूरीनाम इत्यादि देशों में हिन्दीभाषी बड़ी संख्या में हैं। दुनिया के 175 देशों में हिन्दी के शिक्षण प्रशिक्षण के अनेक केन्द्र बनाये गये हैं। आज हिन्दी 12 से अधिक देशों में बहुसंख्यक समाज की मुख्य भाषा है।

यशवन्तराव चह्वाण वारणा महाविद्यालय वारणानगर कोल्हापुर महाराष्ट्र के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ० प्रकाश शंकरराव चिकुर्डेकर विशिष्ट अतिथि थे। आकाशवाणी, पूर्वोत्तर सेवा शिलांग मेघालय की उद्घोषिका नीता शर्मा, आगरा कॉलेज में अंग्रेज़ी के सहायक प्राध्यापक डॉ० अमरेशबाबू यादव आदि वक्ता के रूप में रहे। बौद्धिक परिसंवाद का संयोजन और संचालन भाषाविज्ञानी एवं समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र

   

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