जम्मू-कश्मीर प्रशासन को सुरक्षा खतरों के मद्देनजर अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए केंद्र सरकार के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए-रजनी सेठी

जम्मू, 21 मई (हि.स.)। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में टिप्पणी की कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है जो देश के संप्रभु अधिकार को मजबूत करता है कि वह अपनी सीमाओं के भीतर रहने वालों को विनियमित करे। 22 अप्रैल को हुए भयानक आतंकवादी हमले के मद्देनजर यह कथन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जिसमें निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया गया था। रजनी सेठी ने कहा कि इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है और आंतरिक सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा की हैं खासकर जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में।

उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले प्रशासन को अवैध बांग्लादेशी/रोहिंग्याओं को वापस भेजने में केंद्र सरकार के प्रयासों को बढ़ाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए ताकि देश को आंतरिक रूप से उत्पन्न होने वाले खतरों से सुरक्षित किया जा सके। इस हमले के जवाब में गृह मंत्रालय (एमएचए) ने भारत में रहने वाले सभी अवैध पाकिस्तानी नागरिकों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने का निर्देश जारी किया। विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि इनमें से कई व्यक्ति वर्षों से भारत में रह रहे हैं और उनके पास आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे भारतीय पहचान दस्तावेज हैं - जो अवैध तरीकों से धोखाधड़ी से प्राप्त किए गए हैं।

यह न केवल हमारी राष्ट्रीय पहचान प्रणालियों को कमजोर करता है बल्कि हमारी आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय अखंडता के लिए भी सीधा खतरा पैदा करता है। यह मुद्दा अवैध पाकिस्तानियों तक ही सीमित नहीं है। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासी भी अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर चुके हैं और विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बस गए हैं यह सर्वविदित है कि इनमें से कुछ व्यक्ति मानव तस्करी, तस्करी और कट्टरपंथ सहित अवैध गतिविधियों में शामिल रहे हैं। उनके बसने का जनसांख्यिकीय प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक और राजनीतिक अशांति का कारण भी बनता है।

हिन्दुस्थान समाचार / रमेश गुप्ता

   

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