जेएनयू की प्रेसिडेंशियल डिबेट में एबीवीपी उम्मीदवार ने पहलगाम में जान गंवाने वालों को दी श्रद्धांजलि

-एबीवीपी उम्मीदवार शिखा स्वराज ने कहा, टुकड़े-टुकड़े मानसिकता वाले संगठन आज खुद टुकड़ों में बंटे

नई दिल्ली, 24 अप्रैल (हि.स.)। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ चुनाव में बुधवार देर रात प्रेसिडेंशियल डिबेट का आयोजन हुआ। इसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के केंद्रीय पैनल से अध्यक्ष पद उम्मीदवार एवं एबीवीपी जेएनयू की इकाई मंत्री शिखा स्वराज ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की।

उन्होंने तीखा सवाल उठाया कि जब कुछ लोग आतंकवाद का कोई धर्म नहीं मानते, तो वे यह क्यों नहीं बताते कि हमलावरों का धर्म और उनकी पहचान क्या थी। उन्होंने कोलकाता, संदेशखाली और मुर्शिदाबाद की महिलाओं और वहां के हिन्दू समाज की पीड़ा की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि वे इस मंच के माध्यम से उन सभी की आवाज बनकर आई हैं।

शिखा स्वराज ने जेएनयू के वामपंथी संगठनों की विचारधारा और कार्यशैली पर कठोर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि इस कैंपस में अब दो विचारधाराएं आमने-सामने खड़ी हैं — एक तरफ वामपंथी, जो आपस में ही उलझे हैं और दूसरी तरफ एबीवीपी, जो राष्ट्रवाद, छात्र सेवा और समर्पण की प्रतीक है।

उन्होंने भरोसा जताया कि वह दिन दूर नहीं जब लाल झंडों द्वारा फैलाया गया अंधकार छटेगा और एबीवीपी की प्रेरणा से यह परिसर फिर से राष्ट्रध्वज के गौरव से पूर्णतः आलोकित होगा। उन्होंने कोविड महामारी के दौरान एबीवीपी कार्यकर्ताओं की निस्वार्थ सेवा को याद करते हुए कहा कि जब सब अपनी जान की परवाह कर रहे थे, तब एबीवीपी के कार्यकर्ता छात्रों की मदद में लगे हुए थे। उन्होंने कहा कि आज यदि इस विश्वविद्यालय में वाई-फाई, ई-रिक्शा, बराक छात्रावास और छात्र सुविधाएं उपलब्ध हैं तो वह एबीवीपी के संघर्षों की ही देन है।

वहीं वामपंथी संगठनों को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें न छात्रों की समस्याओं से सरोकार है, न सुविधाओं से उनका सारा ध्यान केवल लेनिन, स्टालिन और मार्क्स की विचारधारा को बनाए रखने में है। यह टुकड़े-टुकड़े मानसिकता वाले संगठन आज खुद आपस में टुकड़ों में बंट चले हैं, लेकिन इनका अगर बस चले तो यह पूरे भारत को टुकड़ों में बांट दें।

शिखा स्वराज ने अपने भाषण में बिहार की गौरवशाली परंपरा को स्मरण करते हुए कहा कि यह वही धरती है जिसने भारत को सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य और उनकी नीति के निर्माता आचार्य चाणक्य जैसे महापुरुष दिए। इसी मिट्टी से महावीर की तपस्या, कर्पूरी ठाकुर का सामाजिक न्याय, रामधारी सिंह दिनकर की ओजस्वी कविता और दशरथ मांझी जैसा अटूट संकल्प उपजा, मैं उसी धरती से आती हूं।

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हिन्दुस्थान समाचार / Dhirender Yadav

   

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