काटवा में फिर बढ़ रही बालू माफिया की सक्रियता

पूर्व बर्दवान, 7 जुलाई (हि.स.)। काटवा में कुख्यात अपराधी 'जंगल' का दबदबा काफी पहले समाप्त हो चुका था, लेकिन आज भी उस नाम से लोगों के दिलों में दहशत कायम है। लंबे समय से वह कटवा से बाहर है, पर कटवा की जमीन पर अब लालाबाबू नामक एक नया नाम गूंज रहा है। यह नाम भी अब डर का पर्याय बन चुका है।

स्थानीय निवासियों के अनुसार, ‘लालबाबु’ और उनके साथियों का उत्थान अचानक नहीं हुआ। उनका आर्थिक और सामाजिक ‘उत्थान’ अजय नदी के बालू घाट से जुड़ा हुआ है। एक समय झोपड़ियों में रहने वाले ये लोग अब आलीशान मकानों में रहते हैं, जिनमें सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। महंगी कारों में घूमते हैं, छुट्टियां मनाने कश्मीर और अन्य प्रमुख पर्यटन स्थलों पर जाते हैं, जैसे वो जगहें उनकी अपनी ही बस्ती हों।

स्थानीय लोगों के अनुसार अजय नदी के किनारे बैठकर अगर कान लगाया जाए, तो इन तमाम कहानियों की फुसफुसाहट सुनाई देती है। लेकिन सब कुछ चुपचाप। क्योंकि अगर इन लालबाबुओं के खिलाफ कोई सार्वजनिक रूप से आवाज उठाए, तो उसकी खैर नहीं।

स्थानीयों का कहना है कि जब तक अजय नदी के बालू घाट रहेंगे, तब तक काटवा में नए-नए ‘लालबाबु’ उभरते रहेंगे। जिसको जितना ज्यादा अजय नदी का हिस्सा मिलेगा, वो उतना ही अमीर बनेगा। राजुआ गांव में हालिया बम विस्फोट ने भी किसी को चौंकाया नहीं। अतीत में भी काटवा ने ऐसे कई धमाके देखे हैं। बिना बम और पिस्तौल के अजय नदी में अवैध धंधा नहीं चलता।

एक स्थानीय निवासी ने बताया कि राजुआ गांव के पास ही एक बालू घाट है, जहां अजय नदी की किनारे के साथ-साथ कुछ किसानों की ज़मीन पर भी कब्जा करने की कोशिशें हो रही है। हालांकि, पूर्व बर्दवान जिला प्रशासन इन अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए पूरी तरह से सक्रिय है। इस साल जिले के बाकी हिस्सों में अवैध बालू का व्यापार नहीं देखा गया, और न ही ओवरलोडिंग के पुराने दृश्य।

जिला पुलिस और प्रशासन ने सख्त कदम उठाए हैं, लेकिन अजय के किनारे ‘मैनेजमेंट सिस्टम’ पहले से ही मजबूत रहा है। कहा जाता है कि यह व्यवस्था जंगल शेख के समय से चली आ रही है। कुछ समय के लिए काटवा शांत था, क्योंकि उस समय जंगल जेल में था, और लालबाबु शांति से अपना धंधा चला रहा थे।

अब जंगल जेल से बाहर है, और खबर है कि उसका गैंग फिर से इलाके पर कब्जा करने की योजना बना रहा है। राजुआ गांव में हुए बम विस्फोट के पीछे भी जंगल का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। जंगल अब भी भूमिगत है, इसलिए उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

हालात यह हैं कि सिर्फ जंगल ही नहीं, लालबाबु भी अब काफी ताकतवर हो चुका है। इसलिए राजुआ में बम धमाके के बाद कटवा के आसमान पर फिर से 'जंगलराज' की आशंका के बादल मंडराने लगे हैं। लोगों को डर है कि अगर यही चलता रहा, तो फिर से अजय के तट पर ‘जंगलराज’ की पुरानी तस्वीरें लौट सकती हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय

   

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