जौनपुर, 28 अक्टूबर (हि.स.)। कबीर दास का सन्देश जीवन में गहरी आध्यात्मिकता को दर्शाता है। उन्होंने धर्म, जाति और समुदाय की सीमाओं से परे एकता का संदेश दिया। यह भी सिखाया कि सत्य की खोज बाहरी दुनिया में नहीं बल्कि अंदर के मन में करनी चाहिए। उनकी वाणी आज भी सामाजिक समरसता और मानवता की दिशा में प्रेरणा देती हैं। यह बातें सोमवार को एक संगोष्ठी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने कही।
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के संकाय भवन के संगोष्ठी भवन में जनसंचार विभाग द्वारा सोमवार को 'आज के समय में कबीर' विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शिक्षक डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने आज के परिवेश में कबीर की महत्ता पर विस्तार से अपनी बात रखी। साधो ये मुरदों का गांव, पीर मरे पैगम्बर मरिहैं, मरि हैं जिन्दा जोगी, राजा मरिहैं परजा मरिहै.....कबीर की साखियों को रागमय प्रस्तुत कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि काम, मद, क्रोध से हम भरे पड़े हैं। आज प्रतिस्पर्धा के दौर में रिश्तों की गर्माहट और सामूहिकता की भावना समाप्त हो रही है। इसलिए आज धन और वैभव होने के बाद भी लोग सुखमय जीवन नहीं जी पा रहे है।
जनसंचार विभाग के अध्यक्ष डॉ. मनोज मिश्र ने कहा कि कबीर ने समाज को जोड़ने और मानवता की राह दिखने में बड़ी भूमिका अदा की। संत कबीरदास ने बड़े सहज तरीके से समाज की कुरीतियों पर प्रहार किया जो आज भी प्रासंगिक है। अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनील कुमार एवं संचालन डॉ. दिग्विजय सिंह राठौर ने किया। इस अवसर पर डॉ. श्याम कन्हैया, डॉ. नितेश जायसवाल, डॉ. चन्दन सिंह, डॉ. शशिकांत, डॉ सुरेन्द्र कुमार यादव, डॉ अवधेश मौर्य समेत विद्यार्थी उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव