भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर एमजीसीयू में व्याख्यान का आयोजन
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- Nov 15, 2024
पूर्वी चंपारण,15 नवंबर (हि.स.)।महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के चाणक्य परिसर में शुक्रवार को भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयन्ती पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया।
व्याख्यान में कूच बेहार पंचनाम बर्मा विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शक्तिपाद कुमार मुख्य वक्ता के रूप में ऑनलाईन माध्यम से जुड़े। उन्होंने बिरसा मुंडा को स्मरण करते हुए उनके द्वारा किये गये योगदान पर विस्तृत चर्चा करते कहा कि बिरसा मुंडा ने मात्र बीस वर्ष की आयु में ही अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। झारखण्ड के खूंटी जिला के उलिहातू गांव में जन्मे हुआ बिरसा का बचपन का नाम दाऊद था और आदिवासी मुंडा समुदाय से सम्बन्ध होने से मुंडा नाम जुड़कर दाऊद मुंडा हुआ किन्तु बाद में बिरसा मुंडा के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
आदिवासियों के हित के लिए उन्होने अपने प्राणों न्यौछावर कर दिया। इस कारण ही बिरसा मुंडा अमर हो गए हैं। मुख्य वक्ता ने उनके सांगीतिक प्रेम को स्पष्ट करते हुए आदिवासी जनजाति के दो गीतों को भी स्पष्ट करते हुए मधुर स्वर में सुनाकर सबका मन मोह लिया। व्याख्यान के अन्त में प्रश्नोत्तरी भी रखा गया जिसमें प्रश्नों का उत्तर वक्ताओ ने दिया।वही हिन्दी विभाग के प्रोफेसर राजेन्द्र बडगूजर ने कहा कि आदिवासियों के अधिकार के लिए बिरसा मुंडा का योगदान अति महत्त्वपूर्ण रहा है। तिलक जी के स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है का सम्बन्ध कहीं न कहीं आदिवासी उक्ति से प्राप्त होता है। अन्त में बिरसा मंडा को समर्पित करते हुए एक कविता से अपना व्याख्यान समाप्त किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते प्रो. प्रसूनदत्त सिंह ने जय जोहार कहकर संगोष्ठी को सम्बोधित किया।
उन्होने कहा कि जनजातीय संस्कृति को देखकर भारतीय संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। आस्तिक और नास्तिक के भेद को स्पष्ट करते हुए कहा कि वैदिक संस्कृति की संस्कृति के समीप जनजातीय परम्परा हमें दिखाई पड़ती है। वैदिक काल में रुद्र, मरुत, अग्नि इत्यादि देवी-देवताओं की पूजा करते थे, तो उन सभी को हम जनजातीय समूहों में स्पष्ट रूप से देखते है़। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पूर्व ही जनजातियों के सन्दर्भ में बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों का डटकर सामना करते हुए अपने प्राणों की बलि दिया था और अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करा दिया। प्रो. सिंह ने आगे कहा कि हमें इस दिन को गौरव की तरह मनाना चाहिए। कार्यक्रम मे धन्यवाद ज्ञापन समाजशास्त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ श्वेता ने किया।जबकि संचालन अंग्रेजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ उमेश पात्रा ने किया। ऑनलाईन एवं ऑफलाईन दोनों ही माध्यम से हो रहे इस व्याख्यान में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार