ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर उठाया सवाल, कहा- 'अधिकारियों का निलंबन स्वीकार नहीं'

कोलकाता, 7 अगस्त (हि.स.)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को चुनाव आयोग द्वारा चार अधिकारियों को निलंबित किए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार अपने कर्मचारियों के साथ खड़ी है और आयोग को यह अधिकार सिर्फ चुनावों की घोषणा के बाद ही मिलता है।

ममता बनर्जी ने सरकारी योजना वितरण कार्यक्रम में बोलते हुए कहा, “चुनाव आयोग यह कार्रवाई किस नियम के तहत कर रहा है? संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। चुनाव में अभी समय है, क्या वे एनआरसी के नाम पर डराने की कोशिश कर रहे हैं?” उन्होंने साफ तौर पर कहा कि आयोग मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेन्सिव रिवीजन) के बहाने असली मतदाताओं के नाम हटाने की साजिश रच रहा है।

चुनाव आयोग ने मंगलवार को दो जिलों में मतदाता सूची तैयार करने में गंभीर लापरवाही को लेकर राज्य सरकार के दो इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ), दो सहायक ईआरओ और एक डेटा एंट्री ऑपरेटर को निलंबित करने का आदेश दिया था। साथ ही इन सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश भी जारी किया गया।

मुख्यमंत्री ने दोहराया कि जब तक चुनावों की औपचारिक घोषणा नहीं होती, आयोग को ऐसे दखल का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग एसआईआर की आड़ में “पीछे के दरवाजे से एनआरसी” लागू करने की कोशिश कर रहा है।

ममता बनर्जी ने दावा किया कि बंगालियों को मतदाता सूची से हटाकर उन्हें विदेशी बताने की साजिश चल रही है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे फिर से अपना नाम सूची में दर्ज कराएं। उन्होंने सवाल किया, “जो लोग आज कानून बना रहे हैं, क्या उनके पास भी अपने सारे दस्तावेज हैं? जो लोग घर में पैदा हुए थे या जिनके कागजात प्राकृतिक आपदाओं में खो गए, उनका क्या होगा?”

मुख्यमंत्री ने कहा कि बंगाली भाषा बोलने के कारण अन्य राज्यों में प्रवासी मजदूरों को प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। हमने अब तक दो हजार से अधिक लोगों को उनके घर वापस लाया है। कुछ को बांग्लादेश की ओर धकेला गया, कुछ को रोहिंग्या कहा गया – यह सब दोहरे इंजन की सरकारों की साजिश है।”

उन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे भाजपा शासित राज्यों पर निशाना साधते हुए कहा कि इन राज्यों में बंगाली बोलने वालों को टारगेट किया जा रहा है।

ममता बनर्जी ने अपने मोबाइल पर 1912 की ₹10 की मुद्रा नोट की तस्वीर दिखाते हुए कहा, “इस नोट पर बंगाली भाषा छपी थी। लेकिन अब कहा जा रहा है कि बंगाली भाषा जैसी कोई चीज नहीं है। क्या अपनी मातृभाषा बोलना गुनाह है?” अगर कोई वास्तव में अवैध प्रवासी है तो उसे देश से बाहर किया जाना चाहिए, लेकिन इस नाम पर भारत के असली नागरिकों को परेशान किया जा रहा है। उत्तर बंगाल के कुछ निवासियों को असम सरकार द्वारा नोटिस भेजे जाने की खबर पर उन्होंने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा, “यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

उन्होंने सवाल उठाया कि जब बंगाल में दूसरे राज्यों से आए करीब 1.5 करोड़ प्रवासी मजदूर काम कर रहे हैं, तब उन पर कोई सवाल नहीं उठता। हमारे मजदूरों को उनके कौशल के कारण बुलाया गया था, वे अपनी मर्ज़ी से नहीं गए थे।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

   

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