Master Sansar Chand मास्टर संसार चंद बरू जम्मू के पहले आधुनिक चित्रकार

पंडित संसार चंद बरू (अकटुबर 1900-जून 1995), जिन्हें प्यार से 'मास्टरजी' कहा जाता था, जम्मू के पहले आधुनिक चित्रकार थे। उनकी अनोखी चित्रकला शैली, जो पहाड़ी कला और आधुनिक कला का एक सुंदर संगम थी, उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। मास्टरजी ने अपने जीवन में न केवल कला के प्रति अपना समर्पण दिखाया, बल्कि जम्मू की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और उसे संरक्षित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

परिवार और प्रारंभिक जीवन
पंडित संसार चंद बारू का जन्म 2 अक्तुबर 1900 में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, पंडित धनपत बरू, महाराजा प्रताप सिंह के राज पुरोहित थे, और उनका परिवार जम्मू के पक्का डंगा इलाके के फत्तु चौगान मोहल्ले में रहता था। केईं पीढ़ी और - करीब 500 वर्ष पहले बरू परिवार के बज़ुर्ग असाम से आ कर जम्मु और  हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में  बस गये। 

अकादमिक
संसार चंद जी का अकादमिक सफर- प्रिंस आफ वेल्ज कालेज (आज का जी. जी. ऐम. कालेज) में FA की कक्षा तक सीमित रहा, और 1920 में उन्होंने कालेज छोड़ दिया। चित्रकला के प्रति उनका प्रेम कालेज के दिनों से पहले ही से ही स्पष्ट था। जब उनके पिता ने देखा कि उनका बेटा पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहा है, तो उन्होंने जगत राम 'छुनिया' से संपर्क किया, जो उस समय के एक प्रसिद्ध कलाकार थे। छुनिया ने संसार चंद को चित्रकला की बुनियादी शिक्षा दी, और धीरे-धीरे वह एक कुशल चित्रकार बन गए।

कला में योगदान
मास्टरजी ने अपने करियर की शुरुआत आज़ादी से पहले मीरपुर में  सरकारी तकनीकी संस्थान  ड्राइंग मास्टर के रूप में की। बाद में वह जम्मू के कच्ची छवानी, और श्रीनगर के सरकारी तकनीकी संस्थानों  कच्ची छवानी में ड्राइंग मास्टर के पद पर कार्यरत रहे। उनकी कला के प्रति जुनून और समर्पण ने उन्हें एक बेहतरीन जलरंग ड्राइंग मास्टर के रूप में चित्रकार बना दिया।

संसार चंद बरू आज़ादी से पहले महाराजा हरी सिंह जी के शासन काल में राज दरबार में सरकारी चित्रकार के पद पर रहे, और उन्होंने ही डोगरा राज़ दरबार का ऐमबैलम बनाया, और 1960 की दहाई में वह महारानी यशोराज्य लक्ष्मी को चित्रकला भी सिखाते रहे।

संसार चंद बरू को जम्मू के डोगरा कला संग्रहालय (पहले डोगरा आर्ट गैलरी) के पहले क्यूरेटर के रूप में नियुक्त किया गया था। इस संग्रहालय में उन्होंने बेशकीमती पहाड़ी लघु चित्रों, विशेष रूप से बसोली चित्रकला, को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बाशोली के पद्हा परिवार से संपर्क किया और उनके प्रयासों से बाशोली के लगभग 70 चित्रों को संग्रहालय में शामिल किया गया। इन चित्रों में रसमंजरी श्रृंखला के अद्वितीय चित्र शामिल थे, जो जम्मू की कला धरोहर का हिस्सा बने।

मास्टरजी के व्यक्तिगत प्रयासों के कारण संग्रहालय में कई अनमोल वस्तुएं, जैसे डोगरा परिधान, सिक्के, हस्तलिखित पांडुलिपियां, शिल्पकला, गहने, टेराकोटा सिर, मूर्तियां, धातु की वस्तुएं, और पत्थरों पर खुदे शिलालेख भी शामिल किए गए। फारसी में लिखी गई 'शाहनामा' को भी मास्टरजी के प्रयासों से संग्रहालय में लाया गया।

सांस्कृतिक योगदान
मास्टरजी न केवल एक महान कलाकार थे, बल्कि वे डोगरी साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने में भी सक्रिय थे। 1944 में, उन्होंने भगवत प्रसाद साठे, दीनू भाई पंत, डी.सी. प्रशांत, नारायण मिश्रा और प्रोफेसर रामनाथ शास्त्री के साथ मिलकर डोगरी संस्था की स्थापना की। मास्टरजी को इस संस्था का पहला अध्यक्ष चुना गया। इस संस्था ने डोगरी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिनमें 'जागो डुग्गर' और 'नमी चेतना' जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन शामिल था। इन पत्रिकाओं के माध्यम से डोगरी साहित्य को व्यापक स्तर पर प्रचारित किया गया।

मास्टरजी ने 'बावा जित्तो का बलिदान' नामक पहला डोगरी नाटक भी 1948 में टिकरी में आयोजित किया। उनके प्रयासों से जम्मू के कलाकारों की एक भव्य चित्रकला प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। 1952 में, डोगरी संस्था ने दिल्ली में एक और प्रदर्शनी आयोजित की, जिसमें जम्मू के कलाकारों की चित्रकला को प्रदर्शित किया गया।

कला की विरासत
मास्टरजी एक अनुशासित व्यक्ति थे, जिन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उन्होंने कई अलग-अलग शैलियों में चित्र बनाए, जिनमें पहाड़ी लघु चित्रकला, बंगाल स्कूल की शैली, पोर्ट्रेट, लैंडस्केप और एब्सट्रैक्ट शैली शामिल थी। 

संसार चंद जी 1963 में "फाइन आर्ट सोसाइटी, जम्मू" का गठन किया, इस सोसाइटी की छत्रछाया में जम्मू के चित्रकार हर रोज़ मास्टर जी के स्टुडियो 12, पक्का डुगा में मिलते और एक साथ बैठ कर ड़्राइंग, सकेचिंग और चित्रकारी सीखते।

मास्टरजी का घर पक्का डंगा में कलाकारों, कवियों, लेखकों और बुद्धिजीवियों का मिलन स्थल था। यहां प्रसिद्ध हिंदी लेखक अज्ञेय, प्रोफेसर नीलांबर देव शर्मा, रामनाथ शास्त्री, परमानंद अलमस्त, नरसिंह देव जम्वाल, और अन्य साहित्यकार नियमित रूप से आते थे। मास्टरजी की मित्रता कामरेड धनवंत्री के साथ भी थी, और उनके कार्यों की प्रशंसा बख्शी गुलाम मोहम्मद और डॉ. करण सिंह जैसे प्रमुख व्यक्तियों ने की।

1954 में जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद जम्मू आए और डोगरा आर्ट गैलरी का उद्घाटन किया, तो उन्होंने भी मास्टरजी के कार्यों की सराहना की। मास्टरजी की प्रकाशित रचनाओं ने अंतरराष्ट्रीय कला समीक्षकों का भी ध्यान आकर्षित किया।

मास्टर संसार चंद जी ने  लक्ष्मी नरायण जी के साथ मिल कर  "डोगरी लोक साहित्य और प्हाड़ी चित्रकला" पर Dogri Folk Literature and Pahari Art नाम की किताब लिखी जिसे 'जम्मू ऐण्ड़  कश्मीर अकादिमी आफ आर्ट कल्चर ऐण्ड लैंगवेजिज' ने 1965 में प्रकाशित की, उस समय इसकी 1000 प्रतियां छपवाई गेईं।

मास्टर संसार चंद बरू जी के 71 वर्षिय बेटे महेश बरू के कुछ संस्मरण:

मेरे जन्म 1953 के 4 साल के अन्दर ही स्कुल/कालेज के दिनों में मेरा सारा समय मेरे बाऊ जी स्वर्गिय संसार चंद बरू जी के स्टुडियो में ही गुज़रता। मैं आश्चर्यरत हो उनको चित्र बनाने हुऐ देखता रहता, और सोचना रहता कि क्या कभी मैं भी चित्र बना सकुंगा।

उनका स्टुडियो उन दिनों समाजिक और संस्कृतिक गतिविधयों का केंद्र था। लेखक, चित्रकार, समाज शास्त्री सब रोज शाम यहीं मिलते ते।
1944 में वसंतपंचमी के दिन "डोगरी संस्था" की स्थापना मास्टर जी के इसी स्टुडियो में हुई।
भगवत प्रसाद साठे, दीनू भाई पंत, डी.सी. प्रशांत, नारायण मिश्रा,  प्रोफेसर रामनाथ शास्त्री और संसार चंद जी इस साहित्यिक क्रांति की जनक संस्धा के संस्थापक सदस्यें बने, और मास्टर संसार चंद बरू जी को डोगरी संस्था का पह़ला अध्यक्ष चुना गेया।

मैं मेरे बाऊ जी के साथ उनकी उंगली पकड़ कर डोगरी संस्था के पक्का डंगा, में चौथी मंज़िल पर  स्थित नये दफ्तर में जाता और डोगरी के शीर्ष लेखकों और कवियों की रचनाएं सुन भावविबोर हो जाता।
इस तरह मुझे प्रो. राम नाथ शास्त्री, नरेन्द्र खजुरिया, राम लाल शर्मा, मधुकर जी, परमानन्द 'अलमस्त', पद्मा सचदेव, शम्बु नाथ शर्मा, दीनु पा
भाई पंत, तारा स्मैल्पुरी जैसे अनेक महानुभावों का सानिध्य और आशिर्बाद हासिल हुआ।

हमारी 'फाइन आर्ट सोसाइटी, जम्मू' हर महिने आर्ट पिकनिक आयोजित करता था, मुझे याद है, यह 1-2 दिन की पिकनिक बहुत उपयोगी और उत्साहवर्दक होती थी। विद्या रत्न जी, तिर्लोक सिंह बतरा, देवराज, नरसिंह देव जम्वाल इत्यादि कटने ही चित्रकार इस सोसाइटी से लाभ्मवित हुये।

मेरे बचपन में बाऊ जी के साथ मुझे सभी रेडियो और सरकारी उत्सवों, गोष्ठियों, फिल्म शोज में जाने का मौका मिलता। मास्टर जी अपने शागिर्दौं के साथ साथ मेरे भी दार्शनिक मैन्टर और उस्ताद ते।

1963 में मुझे में ड़्राइंग प्रतियोगिता में द्वितिय, और 1967 में जम्मू कशमीर में 1 सप्ताह के  यूथ फैस्टिवल में अपने रणवीर सिंह हायर सकेण्डरी स्कूल का प्रतिनीधित्व करने का अव्सर मिला, इसी वर्ष 14 वर्ष की आयु में मुझे हमारी रियासत के सर्वोतम गायक का पुरस्कार मिला

मेरी नौकरी और तक्निकी कार्यक्षेत्र मुझे विश्व के भिन्न भिन्न देशों में ले गेये, और मुझे भिन्न भिन्न देशों की संस्कृति, कला और समाज को जानने एवं समझने का मौका मिला।

पिताश्री के देहान्त के उपरांत, 1995 के बाद मैने उनके बिरसे को सम्भालने और संजोने का काम शुरू, इसी सिलसिले में मैंने साल 2000 में उनकी याद में 'डुग्गर संसार'  नाम की बैव साईट की रचना की, जिसदा उद्घाटन 30 जून को श्रद्धेय डा. कर्ण सिंह जी ने किया। वाईफाई एवं किन्ही दुसरी तकनिकि रुकावटों की वजह से यह उपक्रम सफल नहीं हो पाया।

वहीं इसी वर्ष मेरा "डोगरा समाज दिल्ली" उपक्रम शन्ने शन्ने आगे बड़ता रहा, और ऐन सी आर  दिल्ली, में समाज के अन्दर अपनी भाषा, संस्कृति और इतिहासिक गौरव को संचारित करने के कार्य को आगे बड़ावा गया। आज डोगरा समाज ट्रस्ट दिल्ली, डोगरों का एक सशक्त संगठन है। 

 

रूप और कलेवर में आपको प्रस्तुत करते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है।

हमारी प्रगतिशील डुग्गर संसार, बैव साईट हमारी संस्कृति, इतिहास, कला और जम्मू हिमाचल के अलग अलग छेत्रों को प्रतिविम्बित करदी हैं। 
हमारा पूरा प्रयास है कि हमारे प्यारे डुग्गर के बारे में  ज्यादा से ज्यादा जानकारी आप तक पोहंचे, और हमारे युवा कलाकारों एवं उद्योग कर्मियों को प्रगति के नये अवसर मिलें। हमारा भरपूर प्रयास रहेगा कि डोगरी का रोजमर्रा की भाषा के रूप में प्रयोग को लगातार बढ़ाया जाऐ। 
आपसे बी अनुरोध है कि आप भी इस उपक्रम में अपना उत्साही योगदान दें।

   

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