विवादित सलाइन : पश्चिम बंगाल फार्मास्यूटिकल की गुणवत्ता पर उठे सवाल, आरोपित कंपनी के खिलाफ पहले भी मिली थीं शिकायतें

कोलकाता, 13 जनवरी (हि. स.)। पश्चिम बंगाल फार्मास्यूटिकल द्वारा निर्मित सलाइन की गुणवत्ता और उसे जीवाणुमुक्त करने की प्रक्रिया में गंभीर खामियां पाई गई हैं। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और राज्य औषधि नियंत्रण ने कंपनी की सभी गतिविधियों को तुरंत रोकने की सिफारिश की है।

राज्य औषधि नियंत्रण अनुसंधान प्रयोगशाला ने खुलासा किया है कि विवादित सलाइन के कई नमूने अब भी परीक्षण के लिए लंबित हैं। एक अधिकारी ने तकनीशियनों की कमी के कारण रिपोर्ट में देरी की बात मानी। जून में भेजे गए नमूनों की रिपोर्ट अब तक तैयार नहीं की गई है। राज्य स्वास्थ्य विभाग के हस्तक्षेप के बाद, इस‌ हफ्ते तक रिपोर्ट पूरी करने का आश्वासन दिया गया है।

दिसंबर में, कर्नाटक के स्वास्थ्य विभाग ने भी रिंगर्स लैक्टेट सलाइन की गुणवत्ता को लेकर शिकायतें दर्ज कीं। चार से छह दिसंबर तक किए गए निरीक्षण में गुणवत्ता नियंत्रण और दस्तावेजों में गंभीर खामियां सामने आईं। आवश्यक परीक्षण और रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं थे।

मई 2023 में, कर्नाटक के चार जिलों में लगभग 32 हजार 500 रिंगर्स लैक्टेट की आपूर्ति की गई थी। 27 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें 16 नमूने गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गए। प्रसूति महिलाओं की मौत को लेकर इस सलाइन के इस्तेमाल को जिम्मेदार ठहराते हुए कर्नाटक स्वास्थ्य विभाग ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी। इसके बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार नहीं चेती और इस कंपनी की ओर से लगातार सामानों की आपूर्ति होती रही। इस बात के भी आरोप लगे हैं कि स्वास्थ्य विभाग के कुछ अधिकारियों को कंपनी ने मोटी रकम घूस के तौर पर लगातार दी थी।

राज्य औषधि नियंत्रण अनुसंधान प्रयोगशाला ने बताया कि पहले जांचे गए 12 नमूने गुणवत्ता परीक्षण में सफल रहे, लेकिन बाद के नमूनों की रिपोर्ट अब भी अज्ञात है। तकनीशियनों की कमी और अत्यधिक कार्यभार के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है। प्रयोगशाला में 45 तकनीशियन होने चाहिए थे, लेकिन केवल 12 हैं। बैकलॉग को कम करने के लिए 20 तकनीशियन जल्द ही अनुबंध पर नियुक्त किए जाएंगे।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

   

सम्बंधित खबर