बुधवार 11 दिसंबर को श्रद्धापूर्वक रखा जाएगा मोक्षदा एकादशी का व्रत, मनाई जाएगी गीता जयंती
- Admin Admin
- Dec 10, 2024
जम्मू, 10 दिसंबर (हि.स.)। मार्गशीर्ष महीना बहुत पवित्र माना जाता है। मार्गशीर्ष मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में कर *काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष* आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए । प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं, परंतु जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष के महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धर्मग्रंथों में मोक्षदा एकादशी का बहुत महात्मय बताया गया है। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सूर्योदयव्यापनी एकादशी 11 दिसंबर बुधवार को होने के कारण इस वर्ष मोक्षदा एकादशी का व्रत 11 दिसंबर बुधवार को होगा।
धर्मग्रंथों के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना करने से समस्त पापों का नाश होता है। एकादशी का व्रत रखने का फल अश्वमेघ यज्ञ और तीर्थ स्थानों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले पुण्य से भी अधिक है। मोक्ष की प्रार्थना के लिए यह एकादशी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती एक दिन ही पड़ती है। इस दिन भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। मोक्षदा एकादशी का अर्थ है मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी। इस एकादशी का उपवास करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। और पूर्वजों को स्वर्ग तक पहुंचने में मदद मिलती है। शास्त्रों के अनुसार मोक्षदा एकादशी की तुलना मणि चिंतामणि से की जाती है, जिसके बारे में माना जाता है कि इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन श्रीभगवद्गीता के ग्रंथ को चंदन और तिलक लगाकर पूजा करें। इसके बाद गीता के श्लोकों का पाठ करें और गीता की आरती भी करें।
इस व्रत के पूजन के विषय में महंत रोहित शास्त्री ने बताया शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातून करनी चाहिए ताकि अन्न का एक भी अंश मुंह में न रह जाए। फिर अगले दिन यानी एकादशी के दिन प्रातः काल पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण की उपासना करें,इस दिन सुबह स्नान कर पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े )में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्तिथ देवी-देवता, नवग्रहों,तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए,इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णुसहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान,तिल,दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा