मानवाधिकारों पर छह दिवसीय कार्यशाला का शुभारम्भ, ग्लोबल साउथ के 14 देश हुए शामिल

नई दिल्ली, 3 मार्च (हि.स.)। वैश्विक दक्षिण के देशों में मानवाधिकार संस्थानों (एनएचआरआई) के वरिष्ठ पदाधिकारियों में क्षमता निर्माण की छह दिवसीय कार्यशाला का आज यहां शुभारंभ हुआ। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (भारत) ने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (आईईटीसी) के अन्तर्गत इसका आयोजन किया है। ग्लोबल साउथ के 14 देशों के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों (एनएचआरआई) से लगभग 47 प्रतिभागी इसमें हिस्सा ले रहे हैं। ये देश मेडागास्कर, युगांडा, समोआ, तिमोर लेस्ते, डीआर कांगो, टोगो, माली, नाइजीरिया, मिस्र, तंजानिया, मॉरीशस, बुरुंडी, तुर्कमेनिस्तान और कतर हैं।

न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम (अध्यक्ष, एनएचआरसी) ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारत विभिन्न जातियों, समुदायों, कला रूपों और भाषाओं के साथ समृद्ध विविध सांस्कृतिक लोकाचार का देश है और यह सदियों से साझा मूल्यों और परंपराओं की एकता में पनप रहा है। हालांकि विविधता के साथ-साथ विविध समस्याएं भी आती हैं, जिनके लिए विविध समाधानों की आवश्यकता होती है। हर देश की अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक परंपराएं होती हैं और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के बाद उनके साथ निपटने के लिए निर्धारित मानकीकृत दृष्टिकोणों को देखते हुए, विविधताओं को संबोधित करते समय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन ने कहा कि आईटीईसी जैसे मंच एक-दूसरे की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और मानवाधिकार मूल्यों को साझा करने और आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान करते हैं, ताकि प्रत्येक देश में अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं के साथ उभरती मानवाधिकार चुनौतियों का सर्वोत्तम तरीके से समाधान करने के तरीकों पर विचार और खोज की जा सके।

उन्होंने वैश्विक दक्षिण के एनएचआरआई और उनके देशों के भाग लेने वाले वरिष्ठ पदाधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिन्होंने एनएचआरसी, भारत द्वारा उन्हें भागीदारी के लिए नियुक्त करने के निमंत्रण को स्वीकार किया। उन्होंने कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों का भी उल्लेख किया, जो देशों या सदियों में प्रचलित मानवीय मूल्यों और लोकाचारों पर प्रकाश डालते हैं, जो आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं।

न्यायमूर्ति (डॉ) बिद्युत रंजन सारंगी (सदस्य, एनएचआरसी, भारत) ने अपने भाषण में कहा कि आयोग ने अपनी व्यापक पहलों के माध्यम से भारत के मानव परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई पश्चिमी दृष्टिकोणों के विपरीत, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को हर चीज से ऊपर रखते हैं, भारत एक अधिक संतुलित मॉडल का पालन करता है, जो व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों अधिकारों को महत्व देता है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मंचों में भारत की भागीदारी एक न्यायसंगत और समतापूर्ण वैश्विक व्यवस्था के निर्माण के प्रति उसके समर्पण को दर्शाती है।

एनएचआरसी, भारत की सदस्य विजया भारती सयानी ने कहा कि अपने सामूहिक ज्ञान और संसाधनों को साझा करके हम लगातार विकसित हो रहे वैश्विक मानवाधिकार परिदृश्य के परिदृश्य में अपने राष्ट्रों और क्षेत्रों में मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकते हैं। उन्होंने मानवाधिकारों के कुछ प्रमुख विषयगत मुद्दों पर भी प्रकाश डाला, जिन पर एनएचआरसी, भारत द्वारा ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इनमें महिलाओं के अधिकार और लैंगिक समानता प्राप्त करना, हाशिए पर पड़े समुदायों की सुरक्षा, विकास और विस्थापन के संदर्भ में कमजोर आबादी की सुरक्षा आदि शामिल हैं।

एनएचआरसी, भारत के महासचिव भरत लाल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारत पारंपरिक रूप से मानवता के व्यापक हित के लिए अपने ज्ञान और बुद्धिमत्ता को हमेशा साझा करना चाहता है। यह प्रशिक्षण उसी भावना के साथ आयोजित किया गया है जिसमें हम एक-दूसरे से सीखने की उम्मीद और अपेक्षा करते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / दधिबल यादव

   

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