नारनौलः हकेवि के विद्यार्थियों ने उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र का किया अध्ययन

-गंगोत्री क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का किया विश्लेषण

नारनाैल, 6 नवंबर (हि.स.)। हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि) महेंद्रगढ़ के भूगोल विभाग के विद्यार्थियों ने उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र को भौगोलिक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण के द्वारा शिक्षकों व विद्यार्थियों के समूह ने भूस्खलन, बाढ़, भूंकप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवदेनशीलता और इस क्षेत्र की विभिन्न भौगोलिक विशेषताओं का अध्ययन किया।

बुधवार को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने इस आयोजन के लिए विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि अवश्य ही इस व्यावहारिक अनुभव से विद्यार्थी लाभांवित हुए होंगे और यह उनके लिए भविष्य में उपयोगी साबित होगा। विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जितेंद्र कुमार ने कहा कि स्थानीय समुदायों पर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए रणनीति तैयार करने के लिए उत्तराखंड क्षेत्र का व्यापक अध्ययन आवश्यक है। यह सर्वेक्षण भूगोल विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सी.एम. मीणा एवं डॉ. काजल मंडल के नेतृत्व में शोधार्थियों और एम.एससी. परास्नातक के विद्यार्थियों ने दस दिवसीय सर्वेक्षण कार्यक्रम के तहत गंगोत्री, उत्तरकाशी और केदारनाथ क्षेत्र का अध्ययन किया। इस दौरान विद्यार्थियों ने इन क्षेत्रों में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के कारणों, प्रभावों और निवारण उपायों का अध्ययन किया।

उन्होंने बताया कि विद्यार्थियों द्वारा गंगोत्री क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विश्लेषण किया गया। जहां उन्होंने ने पाया कि तेजी से पिघलते ग्लेशियर जल स्तर में वृद्धि कर रहे हैं जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है। उत्तरकाशी का क्षेत्र भूस्खलन के लिए संवेदनशील है, और विद्यार्थियों ने यहाँ की भौगोलिक संरचना तथा वर्षा पैटर्न का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि अनियंत्रित निर्माण और जंगलों की अंधाधुंध कटाई मुख्य कारण हैं। केदारनाथ क्षेत्र में 2013 में आई भीषण बाढ़ और भूस्खलन ने भारी नुकसान किया था।

विद्यार्थियों ने पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण करते हुए पाया कि भौगोलिक कारकों ने आपदा को और बढ़ाया। पुनर्निर्माण में जल निकासी प्रणालियाँ और पक्की दीवारों के निर्माण ने भूस्खलन पर नियंत्रण पाया है। रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग का भी अध्ययन किया गया जो न केवल प्राकृतिक आपदाओं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण स्थल हैं। गंगोत्री, उत्तरकाशी और केदारनाथ के सर्वेक्षण ने यह स्पष्ट किया कि प्राकृतिक आपदाएं इस क्षेत्र के भूगोल और पारिस्थितिकी को प्रभावित करने के साथ-साथ मानव जीवन और संसाधनों के लिए भी गंभीर खतरे उत्पन्न करती हैं। उन्होंने बताया कि भूगोल छात्रों ने इन आपदाओं के कारणों और समाधान पर विस्तृत अध्ययन किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्याम सुंदर शुक्ला

   

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