जहां मूर्ति, वहां नमाज़ नहीं, संवाद से निकले विवादित इबादतगाहों का हल : मुस्लिम राष्ट्रीय मंच

नई दिल्ली, 3 जनवरी (हि.स.)। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने भारतीय समाज में सांप्रदायिक सौहार्द्र और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ऐतिहासिक पहल की है। मंच ने देश के मुसलमानों से अपील की है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा राष्ट्रहित में 142 करोड़ लोगों के लिए दिए बयान का सम्मान करते हुए, मुसलमानों को भी बड़ा दिल दिखाते हुए भारत को विकास के रास्ते पर ले जाने का संकल्प लेना चाहिए।

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक एवं मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने बताया कि अदालतें सर्वोपरि हैं लेकिन विवादित धर्मस्थलों पर संवाद के माध्यम से हल निकाला जाना चाहिए। इससे देश की एकता, अखंडता, सौहार्द, भाईचारा और मेलमिलाप बना रहता है, आपसी रंजिशें नहीं रहती हैं। इसलिए मंच का आह्वान है कि जहां कहीं भी दो पक्षों के बीच अदालत में झगड़ा चल रहा है, वहां दोनों पक्ष आपसी संवाद कर आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट करें तो यह किसी भी सभ्य समाज के लिए बेहतर होगा।

मंच के राष्ट्रीय संयोजक मंडल ने ऐलान किया कि संवाद के जरिये हिंदुओं की ऐतिहासिक इबादतगाहों को पुनर्स्थापित करते हुए काशी, मथुरा और सम्भल जैसी जगहों पर बने विवादित ढांचों को हिंदू समुदाय को संवाद के माध्यम से सौंपने का समर्थन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, मंच ने कहा कि ऐसी मस्जिदें जहां किसी कारणवश नमाज नहीं हो रही हो या जो वीरान पड़ी हों, उन मस्जिदों को मुसलमानों को सौंपा जाए ताकि वे उन्हें पुनः स्थापित कर आबाद कर सकें।

मंच ने इस्लामिक सिद्धांतों के आधार पर यह स्पष्ट किया कि बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) की इजाजत इस्लाम में नहीं है। जिन मस्जिदों में टूटी हुई मूर्तियां पाई गई हैं या जिन स्थानों पर मंदिर होने के ऐतिहासिक, सामाजिक अथवा प्रत्यक्ष प्रमाण हैं, वहां नमाज पढ़ना इस्लामिक उसूलों के खिलाफ है और यह नमाज के लिए नापाक जगह है। ऐसी जगह नमाज कबूल नहीं होती। मंच ने कुरान और हदीस का हवाला देते हुए कहा कि जबरन कब्जा की गई भूमि पर मस्जिद बनाना इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है।

चार जनवरी को लखनऊ में मंच का बड़ा कार्यक्रम है। उससे ठीक पहले शुक्रवार की सुबह लखनऊ की बैठक पर चर्चा और एजेंडा तय करने के लिए मंच की ऑनलाइन बैठक हुई। इसमें 20 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर 70 स्थानों से मंच की बैठक में लोग जुड़े। बैठक की अध्यक्षता मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने की, जिसमें देश भर के कई छोटे-बड़े मुस्लिम संगठनों और उनके नेताओं ने शिरकत की। इस ऐतिहासिक बैठक में महिला बुद्धिजीवी ग्रुप, सूफी शाह मलंग संगठन, युवा शिक्षा एवं मदरसा संस्थान, विश्व शांति परिषद, भारत फर्स्ट, हिंदुस्तान फर्स्ट हिंदुस्तानी बेस्ट, गौ सेवा समिति, पर्यावरण एवं जनजीवन सुरक्षा संस्थान, जमीयत हिमायतुल इस्लाम, कश्मीरी तहफ्फुज आर्गेनाइजेशन और कश्मीर सेवा संघ के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। मंच के सभी राष्ट्रीय संयोजक, प्रांत संयोजक और सह संयोजकों ने इस बैठक में भाग लिया और मंच के प्रस्तावों का समर्थन किया। सभी वक्ताओं ने इस्लामिक शिक्षाओं और भाईचारे के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए विवादित इबादतगाहों को हिंदू समुदाय को सौंपने का प्रस्ताव रखा।

बैठक में मंच के प्रमुख पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद अफजाल के नेतृत्व में आयोजित इस बैठक में डॉ. शाहिद अख्तर, पद्मश्री अनवर खान, गिरीश जुयाल, विराग पाचपोर, सैयद रजा हुसैन रिजवी, डॉ. शालिनी अली, अबु बकर नकवी, एस. के. मुद्दीन, शाहिद सईद, हबीब चौधरी, इरफान अली पीरजादा, शिराज कुरैशी, मौलाना इरफान कच्छोची, इलियास अहमद, अली जफर और तसनीम पटेल समेत 200 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया।

संवेदनशील मुद्दों पर बैठक में पहल:

1. ऐतिहासिक प्रमाणों, पारंपरिक एवं प्रत्यक्ष साक्ष्यों, खुदाई में मिले प्रमाणों के आधार पर विवादित स्थलों को हिंदू समुदाय को सौंपा जाए।

2. मुसलमानों से इस्लामी सिद्धांतों का पालन करने और ऐसे स्थानों पर नमाज न अदा करने की अपील की जाए, जो विवादित हों या दूसरे धर्मस्थलों को तोड़कर बनाई गई हों।

3. सरकार से संवैधानिक उपायों के जरिए विवादित स्थलों को पुनर्स्थापित करने की मांग की जाए।

4. अगर समस्या का समाधान संवाद या सरकार के साथ वार्ता से न निकल पाए तो अदालत का निर्णय सर्वोपरि होना चाहिए। जिस प्रकार अयोध्या प्रकरण में अदालत का फैसला सर्वमान्य रहा।

5. इस्लाम में मस्जिद का निर्माण तभी जायज़ माना जाता है जब वह अविवादित भूमि पर हो, जिसे किसी व्यक्ति या संगठन ने वक्फ (दान) कर दिया हो।

6. वक्फ का मतलब है कि वह जमीन पूरी तरह से अल्लाह की इबादत के लिए समर्पित हो गई हो और उस पर किसी प्रकार का विवाद, जबरन कब्जा या गैर-कानूनी कार्यवाही न हो।

7. मस्जिद के लिए वक्फ की भूमि का महत्व इसलिए है, क्योंकि इस्लामी शिक्षा के अनुसार अल्लाह की इबादत के स्थान को शुद्ध और न्यायपूर्ण आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए।

8. अगर भूमि विवादित हो या किसी से छीनकर बनाई गई हो, तो वह मस्जिद इस्लामी मान्यता के अनुसार सही नहीं मानी जाएगी।

9. इस्लाम में मस्जिद को अल्लाह का घर कहा गया है, इसलिए इसे पवित्र और न्यायसंगत तरीके से स्थापित करना हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रभात मिश्रा

   

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