भारत के सच्चे राष्ट्रगुरु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस : अखिलेश मिश्रा
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- Jan 21, 2025
—पॉच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सुभाष महोत्सव का मशाल जलाकर हुआ शुभारम्भ
वाराणसी,21 जनवरी (हि.स.)। भारतीय इतिहास के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस पर मंगलवार से लमही स्थित सुभाष भवन में पॉच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सुभाष महोत्सव की शुरूआत मशाल जलाकर हुई। महोत्सव का शुभांरभ जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के कुलपति प्रोफेसर मजहर आसिफ ने किया। महोत्सव में बाल आजाद हिन्द बटालियन की सेनापति दक्षिता भारतवंशी ने अतिथियों को सलामी दी। महोत्सव में प्रोफेसर मजहर ने नई शिक्षा नीति, 2020 पर डॉ० परोमिता चौबे की लिखित पुस्तक का विमोचन किया। पुस्तकालय सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए बीएचयू के उप पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ राजेश सिंह एवं टीवी पत्रकारिता में आशुतोष सिंह को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पुरस्कार भी दिया।
इस अवसर पर प्रो.मजहर आसिफ ने कहा कि नेताजी सुभाष का सबसे पहला आयाम यही था कि अच्छे इंसान बनो। हमारी परंपरा महान है नहीं तो 800 साल बाद नहीं बचती। अनेकता में एकता को हम नहीं मानते, हम एकता में अनेकता को मानते है। नेताजी सुभाष की जिंदगी इस बात के लिए थी कि भारत के लोग अपने संस्कृति और संस्कार से जुड़े। हम अपने अंदर और बाहर को एक करें। हमारी 20 हजार साल पुरानी संस्कृति है। इसलिए भारत में रहने वाली सभी जीवन के लिए उपयोगी चीजों की पूजा करते है। ये हमारे जल, जंगल, पहाड़ और संस्कार हैं जिसने हमें बदलने नहीं दिया।
महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ऑनलाइन जुड़े। राजदूत अखिलेश मिश्र ने कहा कि नेताजी ने भारतीय संप्रभुता के सर्वोपरि महत्व पर जोर देते हुए कहा था कि जब तक भारत विभाजित रहेगा तब तक सच्ची स्वतंत्रता अधूरी रहेगी। उन्होंने चेतावनी दी कि अंग्रेज कभी भी अनुनय और अहिंसा की नीति का सम्मान नहीं करेंगे, नेताजी के विचार व्यवहारिक थे, जिनमें जाति, जनसंख्या नियोजन, अर्थशास्त्र और राजनीति सहित कई क्षेत्र शामिल थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को आंतरिक राजनीति से प्रभावित नहीं होना चाहिए, बल्कि नेताजी के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। इनमें राष्ट्रीय पहचान का विकास, मजबूत विदेशी संबंधों की स्थापना और राष्ट्रीय संसाधनों को जुटाना शामिल था। नेताजी के नक्शेकदम पर चलते हुए हमें अपने राष्ट्रीय और सांस्कृतिक जीवन को विकसित करने, अपनी तर्कसंगत बुद्धि को बढ़ाने और सामुदायिक और धार्मिक विभाजन से परे जाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
कार्यक्रम में जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली के कुलसचिव प्रोफेसर महताब आलम रिजवी ने भी विचार रखा। महोत्सव की अध्यक्षता करते हुए प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष ने कहा कि नेताजी सुभाष ने लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा की । अपने वैचारिक विरोध के बावजूद भी नेताजी के रिश्ते किसी से खराब नहीं हुए । आजाद हिंद फौज में विरोधी होने बावजूद भी नेहरू ब्रिगेड , गांधी ब्रिगेड बनाया । अगर सुभाष के रास्ते पर चलते तो भारत के पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध रहते । सुभाष आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते थे लेकिन आजादी की लड़ाई के संत बन गए । इतिहास की लीपापोती में सुभाष के इतिहास को छुपा दिया गया ।
महोत्सव के दूसरे सत्र में इतिहासकार प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह ने कहा कि जब भी त्याग करने का मौका मिला सुभाष ने तुरन्त त्याग कर दिया। कांग्रेस का अध्यक्ष पद का त्याग, आईसीएस की नौकरी का त्याग फिर देश के लिए देश का त्याग। इसी त्याग ने देश को शीर्ष पर पहुंचा दिया। इसी को औघड़ त्याग कहते हैं। बीएचयू इतिहास विभाग के प्रोफेसर प्रवेश भारद्वाज,मालवीय सेंटर पीस रिसर्च, बीएचयू के समन्वयक प्रोफेसर मनोज मिश्रा ने भी अपनी बात रखी। संचालन डॉ० निरंजन श्रीवास्तव और धन्यवाद डॉ० मृदुला जायसवाल ने दिया। महोत्सव में नेपाल, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, जापान के शोधकर्त्ताओं, विभिन्न राज्यों के सुभाषवादी चिंतकों एवं बुद्धिजीवियों के अलावा डॉ ए०के० श्रीवास्तव, डॉ कवीन्द्र नारायण, तपन घोष, डॉ अर्चना भारतवंशी, डॉ नजमा परवीन, नाजनीन अंसारी, डॉ पवन पाण्डेय आदि ने भी भागीदारी की।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी